उत्पादन फलन
(PRODUCTION FUNCTION )
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उत्पादन क्या है ?
उत्तर- वह प्रक्रिया जिसके तहत मनुष्य की आवशयकता की पूर्ति करने वाले वस्तुओं एवं सेवाओं का निर्माण किया जाता है उसे उत्पादन कहते हैं|
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कुल उत्पाद (TOTAL PRODUCT) क्या है ?
उत्तर- एक निश्चित समय अवधि के दौरान स्थिर साधनों के साथ एक परिवर्तनशील साधन(LABOUR) की विभिन्न इकाइयों का प्रयोग किये जाने पर जितना उत्पादन होता है उसके कुल योग को कुल उत्पाद कहते हैं|
वास्तव में TP एक परिवर्तनशील साधन की विभिन्न इकाइयों से प्राप्त सीमांत उत्पादों ( MARGINAL PRODUCT) का योग होती है|
अर्थात , TP = ƩMP
Or, TP = AP × L
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औसत उत्पाद( AVERAGE PRODUCT) क्या है ?
उत्तर- परिवर्तनशील साधन की प्रति इकाई उत्पादन को औसत उत्पाद कहते हैं |
जिसे निम्न सूत्र की सहायता से ज्ञात किया जा सकता है :-
AP = TP/L
जहाँ- AP = औसत उत्पाद
TP = कुल उत्पाद
L = परिवर्तनशील साधन श्रम की इकाइयाँ
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सीमांत उत्पाद ( MARGINAL PRODUCT) क्या है ?
उत्तर- परिवर्तनशील साधन की एक अतिरिक्त इकाई का प्रयोग किये जाने पर कुल उत्पादन में जो परिवर्तन आता है उसे सीमांत उत्पाद कहते हैं |
अर्थात – MPn = TPn –TPn-1
जहाँ- MPn = n वीं इकाई का सीमांत उत्पाद
TPn = n वीं इकाई का कुल उत्पाद
TPn – 1 = (n – 1) वीं इकाई का कुल उत्पादन
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उत्पादन फलन क्या है ?
उत्तर:- उत्पत्ति के भौतिक साधनों एवं उत्पादन की भौतिक मात्रा के बीच जो कार्यात्मक सम्बन्ध पाया जाता है उसे उत्पादन फलन कहते हैं |
जिसे समीकरण के रूप में निम्न प्रकार से लिख सकते हैं :-
Qx = f
जहाँ : Qx = वस्तु X की उत्पादन मात्रा
L = श्रम की इकाइयाँ
K = पूंजी
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उत्पादन फलन की विशेषताओं को लिखें ?
उत्तर:- उत्पादन फलन की मुख्यत: निम्नलिखित विशेषताएं हैं :-
- यह उत्पत्ति के भौतिक साधनों एवं उत्पादन की भौतिक मात्रा के बीच कार्यात्मक सम्बन्ध को बताती है |
ii.इसमें उत्पत्ति के साधनों एवं उत्पादन की कीमतों को शामिल नहीं किया जाता है
iii.इसका सम्बन्ध एक निश्चित समय अवधि से है |
- यह स्थिर तकनीकी दशाओं पर आधारित है |
- यह उत्पादन की तकनीक को दर्शाती है |
- अल्पकाल में उत्पति के कुछ साधन स्थिर रहते हैं और कुछ परिवर्तनशील |जिसे अल्पकालीन उत्पादन फलन कहा जाता है |
vii. दीर्घकाल में उत्पत्ति के सभी साधन परिवर्तनशील हो जाते हैं जिसे दीर्घकालीन उत्पादन फलन कहा जाता है |
7 .उत्पादन फलन मुख्यत: कितने प्रकार के होते हैं ?उनके बीच क्या अंतर है ?
उत्तर:- उत्पादन फलन मुख्यत: दो प्रकार के होते है :-
(a)अल्पकालीन उत्पादन फलन(short run production function)
(b)दीर्घकालीन उत्पादन फलन (long period production function)
इनके बीच मुख्यत: निम्नलिखित अंतर है :-
अल्पकालीन उत्पादन फलन |
दीर्घकालीन उत्पादन फलन |
i. इसमें कुछ साधन स्थिर रहते हैं तथा कुछ परिवर्तनशील | | i. इसमें कोई भी साधन स्थिर नहीं रहता बल्कि सभी साधन परिवर्तनशील हो जाते हैं | |
ii. इसका सम्बन्ध अल्पकाल से है | | ii. इसका सम्बन्ध दीर्घकाल से है | |
iii. इसमें उत्पत्ति के साधनों का प्रयोग अनुपात बदल जाता है | | iii. इसमें उत्पत्ति के साधनों का प्रयोग एक निश्चित अनुपात में ही किया जाता है | |
iv. इसमें उत्पादन के पैमाना को नहीं बदला जा सकता है | | iv. इसमें उत्पादन के पैमाने को आवश्यकतानुसार बदला जा सकता है | |
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स्थिर साधन( FIXED FACTOR) क्या है ?
उत्तर- वे साधन जिनके प्रयोग को उत्पादन के अनुरूप नहीं बदला जा सकता है उन्हें स्थिर साधन कहते हैं |जैसे- भारी मशीन एवं उपकरण |
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परिवर्तनशील साधन ( VARIABLE FACTOR) से आप की समझते हैं ?
उत्तर- वे साधन जिनके प्रयोग को उत्पादन के अनुरूप बदला जा सकता है उन्हें परिवर्तनशील साधन कहते हैं | जैसे – मजदूर ,कच्चे माल इत्यादि |
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साधन के प्रतिफल ( returns to a factor ) से आप क्या समझते हैं ?
उत्तर- उत्पति के अन्य साधनों को स्थिर रखकर जब केवल एक परिवर्तनशील साधन की इकाइयों में वृद्धि की जाती है तो उसके फलस्वरूप उत्पादन में जो परिवर्तन आता है उसे साधन के प्रतिफल कहते हैं |
इसका सम्बन्ध अल्पकाल से है जिस कारण इसे अल्पकालीन उत्पादन फलन भी कहा जाता है |
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साधन के प्रतिफल कितने प्रकार के होते हैं ?
उत्तर- साधन के प्रतिफल मुख्यत: तीन प्रकार के होते हैं :
(a) साधन के बढ़ते प्रतिफल (increasing returns to a factor)
(b) साधन के स्थिर प्रतिफल ( constant returns to a factor )
(c) साधन के घटते प्रतिफल ( decreasing returns to a factor )
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साधन के बढ़ते प्रतिफल से आप क्या समझते हैं ?
उत्तर- उत्पत्ति के अन्य साधनों को स्थिर रखकर जब केवल एक परिवर्तनशील साधन की इकाइयों में वृद्दि की जाती है तो उसके फलस्वरूप यदि सीमांत उत्पाद (MP) के लगातार बढ़ने के कारण कुल उत्पाद (TP) भी बढती जाती हो तो उसे साधन के बढ़ते प्रतिफल कहते हैं |
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साधन के स्थिर प्रतिफल क्या है ?
उत्तर- उत्पत्ति के अन्य साधनों को स्थिर रखकर जब एक परिवर्तनशील साधन की इकाइयों में वृद्दि की जाती है तो उसके फलस्वरूप एक बिंदु पर यदि सीमांत उत्पाद ( MP) स्थिर( CONSTANT ) हो जाती हो और जिसके कारण कुल उत्पाद (TP) भी समान दर से बढती जाय तो उसे साधन के स्थिर प्रतिफल कहते हैं |
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साधन के घटते प्रतिफल से आप क्या समझते हैं ?
उत्तर- उत्पत्ति के अन्य साधनों को स्थिर रखकर जब एक परिवर्तनशील साधन की इकाइयों में वृद्दि की जाती है तो उसके फलस्वरूप यदि सीमांत उत्पाद(MP) घटने लगे तथा जिसके कारण कुल उत्पाद(TP) घटती हुई दर से बढती जाय तो उसे साधन के घटते प्रतिफल कहते हैं |
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परिवर्तनशील अनुपात का नियम ( law of variable proportion )क्या है ? व्याख्या करें ?
उत्तर- परिवर्तनशील अनुपात का नियम उत्पत्ति ह्रास नियम का ही एक आधुनिक रूप है इसे ह्रासमान सीमांत उत्पाद का नियम( LAW OF DIMINISHING MARGINAL PRODUCT) के नाम से भी जाना जाता है
इस नियम के अनुसार :- उत्पत्ति के अन्य साधनों को स्थिर रखकर जब एक परिवर्तनशील साधन की इकाइयों में वृद्दि की जाती है तो प्रारंभ में कुल उत्पादन (TP) बढती हुई दर से बढती है दूसरी अवस्था में यह घटती हुई दर से बढती है और अंत में यह घटने लगती है |
जिसे निम्न रेखाचित्र में दर्शाया गया है :-
उपर्युक्त रेखाचित्र से निम्नलिखित बातें स्पष्ट होती हैं: –
- प्रारंभिक स्थिति में सीमांत उत्पाद MP बिंदु S तक लगातार बढती जाती है जिसके कारण प्रथम अवस्था में TP बिंदु A तक बढ़ती हुई दर से बढती जाती है |
- सीमांत उत्पाद (MP) बिंदु S के बाद घटती जाती है जिसके कारण दूसरी अवस्था में TP बढ़ती तो है परन्तु घटती हुई दर से |
- बिंदु Q पर MP = 0 हो जाती है तो इस स्थिति में TP अधिकतम हो जाती है |
- बिंदु Q के बाद MP ऋणात्मक हो जाती है जिसके कारण तीसरी अवस्था में TP घटने लगती है |
- औसत उत्पाद (AP) प्रारंभ में बढ़ती है फिर घटती जाती है परन्तु यह धनात्मक ही रहती है |
उपर्युक्त बिन्दुओं से स्पष्ट है कि एक उत्पादक को अपना उत्पादन कार्य प्रथम अवस्था से आगे ले जाते हुए दूसरी अवस्था तक निश्चित रूप से ले जाना चाहिए और यहीं पर उत्पादन को रोक देना चाहिए क्योंकि इस अवस्था में MP गिरती तो है परन्तु धनात्मक रहती है जिसके कारण TP बढती जाती है|साथ ही साथ इस अवस्था में उत्पादक को भी अधिकतम लाभ प्राप्त होने की संभावना प्रबल हो जाती है |उत्पादक को तीसरी अवस्था में कभी नहीं जाना चाहिए क्योंकि इस अवस्था में MP ऋणात्मक हो जाती है |
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परिवर्तनशील अनुपात के नियम की मान्यताओं को लिखें |
उत्तर- परिवर्तनशील अनुपात का नियम निम्नलिखित मान्यताओं पर आधारित है :-
- साधनों के प्रयोग अनुपात को बदला जा सकता है |
- परिवर्तनशील साधन की इकाइयाँ समरूप हैं और एक सामान क्षमता वाली हैं |
- उत्पादन की तकनीक स्थिर है |
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कुल उत्पाद (TP) तथा सीमांत उत्पाद (MP) में क्या सम्बन्ध है?
उत्तर- TP तथा MP में निम्नलिखित सम्बन्ध पाया जाता है :-
- जब MP बढती है तो TP बढ़ती हुई दर से बढती जाती है |
- जब MP घटती है तो TP घटती हुई दर से बढती है |
- जब MP = 0 रहती है तो TP अधिकतम हो जाती है |
- जब MP ऋणात्मक हो जाती है तो TP घटने लगती है |
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पैमाने के प्रतिफल से आप क्या समझते हैं ?
उत्तर- उत्पत्ति के साधनों को एक निश्चित अनुपात में बढ़ाये जाने पर उत्पादन में जो परिवर्तन आता है उसे पैमाने के प्रतिफल कहते हैं |
इसका सम्बन्ध दीर्घकाल से है जिसके अंतर्गत कोई भी साधन स्थिर नहीं रहता बल्कि सभी साधन परिवर्तनशील हो जाते हैं |
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पैमाने के प्रतिफल का नियम से आप क्या समझते हैं ? इसकी विभिन्न अवस्थाओं को उल्लेख करें |
उत्तर- उत्पत्ति के साधनों को एक निश्चित अनुपात में बढ़ाये जाने पर उत्पादन में जो परिवर्तन आता है उसे पैमाने के प्रतिफल के नियम के नाम से जाना जाता है |
इसका सम्बन्ध दीर्घ काल से है जिसके अंतर्गत कोई भी साधन स्थिर नहीं रहता बल्कि सभी परिवर्तनशील हो जाते है |
इस नियम की मुख्यत: निम्नलिखित तीन अवस्थाएं हैं :-
- पैमाने के बढ़ते प्रतिफल :- उत्पत्ति के साधनों को जिस अनुपात में बढ़ाया जाता है यदि उत्पादन उससे अधिक अनुपात में बढ़े तो उसे पैमाने के बढ़ते प्रतिफल कहते हैं |
जिसे निम्न रेखाचित्र में दर्शाया गया है :-
रेखा चित्र से स्पष्ट है कि जब उत्पत्ति के साधनों में 10 % की वृद्धि की जाती है तो उत्पादन में 15 % की बृद्धि हो जाती है जो बढ़ते प्रतिफल की दशा को एस्पष्ट करती है |
- b) पैमाने के स्थिर प्रतिफल :- उत्पत्ति के साधनों को जिस अनुपात में बढाया जाता है ,उत्पादन भी ठीक उसी अनुपात में बढ़े तो उसे पैमाने के स्थिर प्रतिफल कहते हैं |
जिसे निम्न रेखाचित्र में दर्शाया गया है :-
चित्रानुसार उत्पत्ति के साधनों में 10% की वृद्धि करने पर उत्पादन में भी भी 10 % की ही वृद्धि हो जाती है स्थिर पैमाने के प्रतिफल की दशा को स्पष्ट करती है |
- c) पैमाने के घटते प्रतिफल :- उत्पत्ति के साधनों को जिस अनुपात में बढ़ाया जाता है यदि उत्पादन ऊससे कम अनुपात में बढ़े तो उसे पैमाने के घटते प्रतिफल कहते हैं |
रेखाचित्र से स्पष्ट है कि उत्पत्ति के साधनों में 15 % की वृद्धि की जाती है तो उत्पादन में केवल 10 % की ही वृद्धि हो पाती है |जो घटते प्रतिफल की दशा को दर्शाती है |
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साधन के प्रतिफल एवं पैमाने के प्रतिफल में क्या अंतर है ?
उत्तर- साधन के प्रतिफल एवं पैमाने के प्रतिफल में निम्नलिखित अंतर है :-
साधन के प्रतिफल |
पैमाने के प्रतिफल |
i. इसमें कुछ साधन स्थिर रहते हैं और कुछ साधन परिवर्तनशील | | i.इसमें सभी साधन परिवर्तनशील हो जाते हैं अर्थात इसमें कोई भी साधन स्थिर नहीं रहता | |
ii.इसका सम्बन्ध अल्पकाल से है | | ii.इसका सम्बन्ध दीर्घकाल से है | |
iii.इसमें साधनों का प्रयोग अनुपात बदल जाता है | | iii.इसमें साधनों का प्रयोग एक निश्चित अनुपात में ही किया जाता है | |
iii.इसमें उत्पादन के पैमाना को नहीं बदला जा सकता है | | iii इसमें प्लांट के आकार एवं उत्पादन के पैमाने को आवश्यकतानुसार बदला जा सकता है | |
21 आंतरिक बचतों से आप क्या समझते हैं?
उत्तर- आंतरिक बचतें वे लाभ हैं जो एक व्यक्तिगत फर्म को अपने उत्पादन के आकार में वृद्दि करने के कारण सीधे तौर पर प्राप्त होती हैं |
वास्तव में यह लाभ फर्म को केवल तभी प्राप्त होती है जब वह अपने उत्पादन के आकार में वृद्दि करती है |
ये मुख्यत: निम्नवत हैं –
- श्रम विभाजन एवं विशिष्टीकरण की बचतें
- तकनीकी बचतें
- प्रबंधन सम्बन्धी बचतें
- विपणन सम्बन्धी बचते |
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बाहरी बचतों से आप क्या समझते हैं ?
उत्तर- बाहरी बचतें वे लाभ हैं जो उद्योग के विस्तार के कारण उत्पन्न होती हैं जिसका फायदा उद्योग के अंतर्गत कार्य करने वाली सभी फर्मों को समान रूप प्राप्त होता है |
जो निम्नवत हैं :-
- कुशल एवं सस्ती श्रम की उपलब्धता
- यातायात की सुविधा
- वित्तीय संस्थाओं का विकास
- व्यावसायिक सूचनाओं का प्रसार
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आंतरिक हानियों से क्या अभिप्राय है ?
उत्तर- आंतरिक हानियों का तात्पर्य उस नुकसान से है जो एक व्यक्तिगत फर्म को अपने उत्पादन के आकार में वृद्दि करने कारण सहन करना पड़ता है|
यह नुकसान फर्म को सीधे तौर वहन करना पड़ता है |ये निम्नवत हैं-
- प्रबंधन से सम्बंधित कठिनाई |
- ऊँची लागत से सम्बंधित कठिनाई
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बाहरी हानियों से आप क्या समझते हैं ?
उत्तर- बाहरी हानियों से तात्पर्य उन नुकसानों से है जो उद्द्योग के विस्तार के कारण उत्पन्न होती हैं तथा जिनके भार को उद्द्योग के अंतर्गत कार्य करने वाली फर्मों को सामान रूप से उठाना पड़ता है |
ये निम्नवत हैं –
- a) ट्राफिक जाम की समस्या
- b) प्रदूषण की समस्या
- c) फर्मों के बीच कड़ी प्रतियोगिता
THE END