FOREIGN EXCHANGE RATE

विदेशी विनिमय दर 

( FOREIGN EXCHANGE RATE )

(01) विदेशी विनिमय दर/ विनिमय दर क्या है ?

उत्तर – विदेशी विनिमय दर वह दर जिसके आधार पर  देश की घरेलू  मुद्रा को विदेशी मुद्रा के साथ बदला जा सकता है उसे विदेशी विनिमय दर कहते हैं   |अथवा ,विदेशी मुद्रा  की एक इकाई खरीदने के लिए एक देश को घरेलू मुद्रा के रूप में जो कीमत अदा करनी पड़ती है  उसे विदेशी विनिमय दर कहते हैं |

जैसे :-     $1 = 70 रुपैया

उपर्युक्त उदाहरण स्पष्ट रूप से  बताती है कि यदि हमें 1 डॉलर( अमेरिकन डॉलर ) प्राप्त करनी है तो इसके लिए 70 रुपैया खर्च करने होंगे  |

(02) विदेशी विनिमय / विदेशी मुद्रा से आप क्या समझते हैं ?

उत्तर- अपने देश की मुद्रा को छोड़कर अन्य देशों की सभी  मुद्राओं को विदेशी विनिमय / विदेशी मुद्रा कहा जाता है |

जैसे :- डॉलर ,येन, पौंड, युआन , टाका, रूबल , दीनार  आदि |

(03) विदेशी मुद्रा (FOREX) बाजार क्या है ?

उत्तर – वह बाजार जहाँ पर विश्व की विभिन्न देशों की मुद्राओं को ख़रीदा एवं बेचा जाता है | उसे विदेशी मुद्रा बाजार कहते हैं |

(04) स्थिर विनिमय दर (FIXED EXCHANGE RATE) क्या है ?

उत्तर – वह विनिमय दर जिसका निर्धारण सरकार या केन्द्रीय बैंक द्वारा किया जाता है उसे स्थिर विनिमय दर कहते हैं |

यह प्राय: लम्बे समय तक स्थिर रहती है लेकिन यदि इसमें परिवर्तन करना हो तो सरकार या केन्द्रीय बैंक ही इसका निर्णय लेती है |इसके अंतर्गत विनिमय दर का निर्धारण करने के लिए विशेष तौर पर सोना ( GOLD) को आधार बनाया जाता है |

(05) विनिमय दर की स्वर्णमान प्रणाली (GOLD STANDARD SYSTEM OF EXCHANGE RATE) क्या थी ?

उत्तर- विनिमय दर की स्वर्णमान प्राणाली स्थिर विनिमय दर प्रणाली  का ही एक रूप थी जिसे विनिमय का टकसाली समता मूल्य (MINT PAR VALUE OF EXCHANGE or MINT PARITY) भी कहा जाता था |

इस प्रणाली के अंतर्गत विनिमय दर का निर्धारण करने के लिए प्रत्येक देश को अपनी मुद्रा के मूल्य को स्वर्ण के रूप में व्यक्त करना होता था | अर्थात प्रत्येक देश को अपनी मुद्रा की एक इकाई के बदले में  स्वर्ण की कितनी मात्रा प्राप्त होगी उसका आकलन करना पड़ता था  फिर इसके आधार पर एक देश दूसरे देश की मुद्रा के स्वर्ण मूल्य के साथ अपनी मुद्रा के स्वर्ण मूल्य का तुलना करती थी और  विनिमय दर का निर्धारण कर लिया जाता था   |

जैसे :- माना कि – 1 डॉलर = 10 ग्राम सोना

1 रुपया  = 1 ग्राम सोना

उपर्युक्त उदाहरण से स्पष्ट है कि यदि 10 ग्राम सोना प्राप्त करना है तो इसके लिए हमें 10 रूपये खर्च करने पड़ेंगे अत: यहाँ पर डॉलर तथा मुद्रा के बीच  विनिमय दर -1 डॉलर = 10 रूपये होगी |

(06)विनिमय दर की ब्रेटन वुड प्रणाली ( Bretton Woods system of exchange rate) क्या थी ?

उत्तर – विनिमय दर की ब्रेटन वुड प्रणाली स्थिर विनिमय दर प्रणाली का ही रूप थी  इसमें कुछ हद तक समंजन की अनुमति दी गई थी इसलिए इसे विनिमय दर की समंजनीय सीमा प्रणाली भी कहा जाता है  |

इस प्रणाली के अनुसार :-

  1. सबसे पहले विभिन्न देशों की मुद्राओं के मूल्य को अमेरिकी डॉलर  के साथ जोड़ दिया गया |
  2. अमेरिकी डॉलर का एक निश्चित मूल्य स्वर्ण के आधार पर तय किया गया |
  3. सभी मुद्राओं के मूल्य को अंतत: स्वर्ण के रूप में व्यक्त किया जाने लगा |
  4. दो मुद्राओं के बीच समता के लिए स्वर्ण को ही अंतिम इकाई के रूप में स्वीकार किया गया |
  5. मुद्रा के समता मूल्य में समायोजन केवल अंतराष्ट्रीय मुद्रा कोष (IMF) की अनुमति से ही हो सकती थी|

(07) लोचशील विनिमय दर( FLEXIBLE EXCHANGE RATE/ FLOATING EXCHANGE RATE ) क्या है ?

उत्तर – वह दर जिसका निर्धारण विदेशी मुद्रा बाज़ार में विदेशी मुद्रा की मांग एवं पूर्ति की शक्तियों द्वारा होता है उसे लोचशील विनिमय दर कहते हैं |

यह विनिमय दर स्वतंत्र रूप से विदेशी मुद्रा बाज़ार में निर्धारित होती रहती है जो कि हमेशा बदलती रहती है इसमें सरकार का कोई हस्तक्षेप नहीं होता |

(08) प्रबन्धित तैरता हुआ विनिमय दर( MANAGED FLOATING EXCHANGE RATE)

उत्तर- विनिमय दरों में होने वाले अत्यधिक उतार – चढ़ाव को रोकने  तथा विनिमय दर को एक निश्चित स्तर पर बनाए रखने के लिए जब  केन्द्रीय बैंक समय- समय पर विनिमय दर के प्रबंधन हेतु  हस्तक्षेप करती है तो उसे प्रबंधित तैरता विनिमय दर कहते हैं |

विनिमय दरों में अत्यधिक उतार- चढ़ाव होने पर आयातकों एवं निर्यातकों को काफी नुकसान होने लागता है अत: इस स्थिति से निपटने के लिए केन्द्रीय बैंक विदेशी मुद्रा बाज़ार में प्रवेश करती है और  अपने यहाँ जमा रखे विदेशी मुद्रा को बेचती है अथवा विदेशी मुद्रा बाज़ार से विदेशी मुद्रा को खरीदती है ताकि अर्थव्यवस्था के अनुकूल एक विनिमय दर का निर्धारण हो सके |

(09) स्थिर विनिमय दर एवं लोचशील विनिमय दर में क्या अंतर है ?

उत्तर – स्थिर विनिमय दर एवं लोचशील विनिमय दर में निम्नलिखित अंतर है :-

    स्थिर विनिमय दर  लोचशील विनिमय दर
I. इसका निर्धारण सरकार / देश के  केन्द्रीय बैंक के द्वारा किया जाता है | I.इसका निर्धारण अंतराष्ट्रीय मुद्रा बाज़ार में मांग एवं पूर्ति की शक्तियों के द्वारा होता है |
II.यह लम्बे समय तक स्थिर रहती है II.यह हमेशा बदलती रहती है |
III. इसमें परिवर्तन लाने का कार्य सरकार / केन्द्रीय बैंक के द्वारा किया जाता है | III. इसमें परिवर्तन होना विदेशी मुद्रा बाज़ार में कार्यशील मांग एवं पूर्ति की शक्तियों पर निर्भर करता है |
IV. इस विनिमय दर को एक विशेष स्तर पर बनाए रखने के लिए सरकार को अपने पास विदेशी मुद्रा का विशाल भण्डार रखना पड़ता है| IV.इसमें विदेशी मुद्रा  का विशाल भण्डार रखना अनिवार्य नहीं है |
V.इसमें अनिश्चितता  अर्थात शंकाएं कम रहती हैं | V.इसमें अनिश्चितता की स्थिति ज्यादा देखने को मिलती है |

 

(10) स्थिर विनिमय दर के गुण एवं दोषों का उल्लेख करें |

उत्तर- स्थिर विनिमय दर के अंतर्गत विनिमय दर का निर्धारण सरकार / केन्द्रीय बैंक के द्वारा किया जाता है |  यह मुख्यत: दो प्रकार की  हैं :-

  1. विनिमय दर की स्वर्णमान प्रणाली
  2. विनिमय दर की ब्रेटन वुड प्रणाली

यह प्रणाली 1977 में समाप्त घोषित कर दी गई उसके स्थान पर लोचशील विनिमय दर प्रणाली लायी गई |

वास्तव में इसके कई गुण एवं दोष हैं जो क्रमश: निम्नवत हैं :-            गुण :- a) बाज़ार में अनिश्चितता एवं जोखिम की संभावना समाप्त हो जाती है|

  1. b) अटकलबाजी की संभावना ख़त्म हो जाती है |
  2. c) महंगाई को रोकने में सक्षम
  3. d) विदेशी पूंजी के आगमन को प्रोत्साहन
  4. e) अंतराष्ट्रीय व्यापार को प्रोत्साहन
  5. f) भुगतान संतुलन बनाए रखने में सहायक

दोष :-  a) विशाल विदेशी मुद्रा भण्डार रखने की आवश्यकता पड़ती है |

  1. d) जोखिम पूंजी को प्रोत्साहन नहीं मिल पाता है |
  2. c) राष्ट्रीय हितों को नुकसान
  3. e) अर्थव्यवस्था के कई क्षेत्रों में सरकार का हस्तक्षेप बढ़ जाता है |

(11) लोचशील विनिमय दर के गुण एवं दोषों का उल्लेख करें |

उत्तर- लोचशील विनिमय दर के अंतर्गत विनिमय दर का निर्धारण विदेशी मुद्रा बाज़ार में मांग एवं पूर्ति शक्तियों द्वारा होती है |यह दर प्राय: बदलती है |

इसके गुण एवं दोष क्रमश: निम्नवत है :-

गुण :- a) इसमें विशाल मुद्रा भण्डार रखने की कोई आवश्यकता नहीं है |

  1. b) जोखिम पूंजी को प्रोत्साहन मिलता है |
  2. c) अंतराष्ट्रीय स्तर पर पूंजी का आवागमन सरलता से हो जाता है |
  3. d) संसाधनों का कुशलतम प्रयोग होने लगता है |

दोष :- a) बाज़ार में अनिश्चितता की दशा उत्पन्न हो जाती है |

  1. b) आयात- निर्यात से सम्बंधित दीर्घकालीन नीतियाँ बनाने में कठिनाई |
  2. c) द्विपक्षीय व्यापारिक समझौते करने में कठिनाई |
  3. d) घरेलु अर्थव्यवस्था पर अंतराष्ट्रीय व्यापारिक उथल-पुथल का प्रभाव पड़ना |

(12) संतुलन विनिमय दर (EQUILIBRIUM EXCHANGE RATE) का निर्धारण कैसे होता है ? स्पष्ट करें |

उत्तर- विदेशी मुद्रा बाज़ार में संतुलन विनिमय दर का निर्धारण उस बिंदु के आधार पर होता है जहाँ पर विदेशी मुद्रा की मांग एवं पूर्ति एक दुसरे के बराबर हो जाती हैं |

अर्थात , संतुलन विनिमय दर => विदेशी मुद्रा की मांग =विदेशी मुद्रा की पूर्ति

जिसे निम्न रेखाचित्र में स्पष्ट किया गया है :-

उपर्युक्त चित्र से निम्नलिखित बातें स्पष्ट होती हैं :-

  1. बिंदु E संतुलन का बिंदु होगी क्योंकि इस बिंदु पर विदेशी मुद्रा की मांग (Df) तथा विदेशी मुद्रा की पूर्ति (Sf) दोनों आपस में बराबर हो जाती हैं जिसके कारण OR एक संतुलन विनिमय दर के रूप में निर्धारित हो जाती है |
  2. विनिमय दर OR1 रहने पर विदेशी मुद्रा की पूर्ति बढ़कर ON हो जाती जबकि विदेशी मुद्रा की मांग OM रह जाती है अर्थात पूर्ति MN के बराबर बढ़ जाती है अत: Sf > Df रहने के कारण विनिमय दर कम हो कर OR पर आ जाती है |
  3. विनिमय दर OR2 होने पर विदेशी मुद्रा की मांग बढ़कर ON हो जाती है जबकि विदेशी मुद्रा की पूर्ति घटकर OM पर आ जाती है अर्थात मांग MN के बराबर बढ़ जाती है अत: Df > Sf होने के कारण विनिमय दर पुन: बढ़कर OR पर आ जाती है |

इस प्रकार स्पष्ट है कि संतुलन विनिमय दर का निर्धारण केवल  उसी बिंदु के आधार पर होता है जहाँ पर विदेशी मुद्रा की मांग तथा पूर्ति दोनों एक दुसरे के बराबर हो जाती हैं |

(13) संतुलन विनिमय दर क्या है ?

उत्तर- वह बिंदु जहाँ पर विदेशी मुद्रा की मांग तथा पूर्ति आपस में बराबर हो जाती हैं और उसके आधार पर जो विनिमय दर निर्धारित होती है उसे संतुलन विनिमय दर कहते हैं |

अर्थात संतुलन विनिमय दर का निर्धारण वहीँ होता है जब :-

विदेशी मुद्रा की मांग = विदेशी मुद्रा की पूर्ति

(14) अवमूल्यन ( DEVALUATION) से क्या अभिप्राय है ?

उत्तर- सरकार द्वारा घरेलू मुद्रा के मूल्य को विदेशी मुद्रा की तुलना में जान – बूझकर गिरा  देना अवमूल्यन कहलाता है|

जैसे-  विनिमय दर को  Rs 60 = 1 डॉलर से बढाकर Rs 70 = 1 डॉलर कर देना |

यह प्रक्रिया स्थिर विनिमय दर प्रणाली के तहत अपनायी जाती है| सरकार के इस कदम से निर्यात सस्ते एवं आयात महेंगे हो जाते हैं |

(15) अधिमूल्यन ( REVALUATION ) क्या है ?

उत्तर- सरकार द्वारा घरेलु मुद्रा के मूल्य को  विदेशी मुद्रा की तुलना में जान –बूझकर बढ़ा देना अधिमूल्यन कहलाता है |

जैसे- विनिमय दर को Rs 70 = 1 डॉलर से घटाकर Rs 60 = 1 डॉलर कर देना | यह प्रक्रिया स्थिर विनिमय दर प्रणाली के तहत की जाती है | सरकार के इस कदम से आयात सस्ते एवं निर्यात महंगे हो जाते हैं |

(16) मुद्रा मूल्य ह्रास / विनिमय ह्रास( DEPRECIATION) क्या है ?

उत्तर –  विदेशी मुद्रा की मांग एवं पूर्ति की शक्तियों के कारण जब अंतराष्ट्रीय मुद्रा बाज़ार में घरेलू मुद्रा का मूल्य विदेशी मुद्रा की तुलना में स्वत: कम हो जाती है तो उसे मुद्रा मूल्य ह्रास कहते हैं | हमारे देश के सन्दर्भ में इसे रूपये का गिरना भी कहा जाता है | यह स्थिति तब उत्पन्न हो जाती है जब डॉलर की मांग बढ़ जाती है |

यह क्रिया लोचशील विनिमय दर प्रणाली के तहत होती है इसमें सरकार का कोई हस्तक्षेप नहीं रहता है |

(17) विनिमय प्रसार / मुद्रा की मूल्य वृद्धि (APPRECIATION) क्या है ?

उत्तर- विदेशी मुद्रा की मांग तथा पूर्ति की शक्तियों के कारण जब अंतराष्ट्रीय मुद्रा बाज़ार में घरेलू मुद्रा का मूल्य विदेशी मुद्रा की तुलना में बढ़ जाती है तो उसे विनिमय प्रसार / मुद्रा की मूल्य वृद्धि कहते हैं | हमारे देश के सन्दर्भ में इसे रूपये में तेजी कहा जाता है | यह स्थिति तब उत्पन्न होती है जब डॉलर की मांग घट जाती है |

यह क्रिया लोचशील विनिमय दर प्रणाली के तहत होती है जिसमें सरकार का कोई हस्तक्षेप नहीं रहता है |

(18) विदेशी मुद्रा की मांग किस लिए की जाती है ?

उत्तर- विदेशी मुद्रा की मांग सामान्यत: निम्नलिखित कार्यों को पूरा करने के लिए की जाती है |:-

  1. विदेशी ऋण चुकाने के लिए
  2. विदेशों में निवेश करने हेतु
  3. आयात के लिए
  4. विदेशों को GRANT एवं अनुदान देने के लिए
  5. विदेशों से प्रत्यक्ष तौर पर खरीददारी करने के लिए
  6. विदेशी विनिमय की पूर्ति किन स्श्रोतों पर निर्भर करती है ? ये कौन-कौन सी हैं|

उत्तर- विदेशी विनिमय की पूर्ति मुख्यत: निम्नलिखित स्श्रोतों पर निर्भर करती है :-

  1. निर्यात
  2. विदेशों से प्राप्त निवेश से
  3. विदेशों से प्राप्त उधार
  4. विदेशों से grant एवं अनुदान से
  5. विदेशी पर्यटकों के आगमन से

(20) हाजिर बाज़ार( SPOT MARKET) क्या है ?

उत्तर- विदेशी विनिमय बाज़ार से सम्बंधित वह बाज़ार जहाँ पर सिर्फ विदेशी विनिमय का चालू  लेन-देन किया जाता है उसे हाजिर बाज़ार कहते हैं | इस बाज़ार का भविष्य के लेन-देन से कोई सम्बन्ध नहीं है |इसकी प्रकृति दैनिक होती है |इसे प्रभावी विनिमय दर (EFFECTIVE EXCHANGE RATE) भी कहते हैं |

(21) वायदा बाज़ार (FORWARD MARKET) क्या है ?

उत्तर- विदेशी विनिमय से सम्बंधित वह बाज़ार जिसमे भविष्य में किसी तिथि पर पूरा होने वाले लेन- देन का कारोबार होता है उसे वायदा बाज़ार कहते हैं |

इस बाज़ार में लेन- देन के पत्रों पर हस्ताक्षर तो आज किये जाते हैं लेकिन ये लेन-देन भविष्य में किसी दिन पूरा किया जाता है जोकि  भविष्य के लिए निर्धारित  विनिमय दर के आधार  पर किया जाता  है अर्थात  इसमें विदेशी विनिमय का चालू लेन – देन नहीं किया जाता  |

(22) मुद्रा की परिवर्तनीयता(CONVERTIBILITY OF MONEY) से क्या अभिप्राय है ?

उत्तर – मुद्रा की परिवर्तनीयता का अभिप्राय उस व्यवस्था से है जिसके अंतर्गत देश की मुद्रा मुक्त रूप से प्रमुख विदेशी मुद्राओं में तथा प्रमुख विदेशी मुद्राएं मुक्त रूप से स्थानीय मुद्रा में परिवर्तनशील होती हैं |

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