अर्थव्यवस्था की केन्द्रीय समस्याएँ

अर्थव्यवस्था की केन्द्रीय समस्याएँ

( Central problems of an Economy)

Question and answer

  1. आर्थिक समस्या से आप क्या समझते हैं ?

उत्तर- मनुष्य की आवश्यकताएँ अनंत  है एवं इन आवश्यकताओं को पूरा करने वाले संसाधन सीमित है  सीमितता  के कारण  व्यक्ति / अर्थव्यवस्था के समक्ष संसाधनों का प्रयोग विकल्प के  तौर पर  विभिन्न कार्यों करने के लिए किया जाता है |इसलिए चयन की समस्या उत्पन्न हो जाती है,उसे आर्थिक समस्या कहते हैं |

आर्थिक समस्या मुख्यत: तीन कारणों से उत्पन्न होती है :-

  1. असीमित आवश्यकता
  2. संसाधनों की दुर्लभता
  3. संसाधनों का वैकल्पिक प्रयोग
  1. आर्थिक समस्या मुख्यता किन कारणों  से उत्पन्न होती है ? समझाएं |

उत्तर –  आर्थिक समस्या मुख्यता निम्नलिखित  कारणों से उत्पन्न होती है जिनका विवरण निम्नवत है :-

  1. असीमित आवश्यकता:- मनुष्य की आवश्यकताएं अनंत होती हैं ,जो निरंतर जन्म लेती रहती हैं | एक आवश्यकता पूरी होती है तो दूसरी नई आवश्यकता जन्म लेने लगती है | जिसके कारण व्यक्ति को सामान्यत: आर्थिक समस्या का सामना करना पड़ता है |
  2. संसाधनों की दुर्लभता :- संसाधनों की दुर्लभता का अर्थ है – पूर्ति की तुलना में संसाधनों की मांग का आधिक होना (मांग >पूर्ति ) | यह स्थिति उत्पन्न होने के कारण ही व्यक्ति अपनी सभी आवश्यकताओं को एक साथ पूरी नहीं कर पाती है | फलस्वरूप व्यक्ति के समक्ष संसाधनों को चुनने की समस्या उत्पन्न हो जाती है | जो अंततः आर्थिक समस्या का कारण बन जाती है

iii.    संसाधनों का वैकल्पिक प्रयोग :- बहुत सारे ऐसे संसाधन हैं जिनका प्रयोग एक से अधिक कार्यों में किया जा सकता है जैसे – बिजली का प्रयोग घरों में रोशनी के लिए , औधोगिक उत्पादन के लिए ,कृषि कार्य के लिए एवं रेलवे का संचालन करने के लिए किया जा सकता है | ये  सभी कार्य हमारे लिए काफी आवश्यक हैं लेकिन इन उद्देश्यों को पूरा करने के लिए हमें यह तय करना पड़ता है कि कितनी मात्रा में बिजली का प्रयोग घरों में रोशनी के लिए करेंगे एवं कितनी मात्रा में बिजली का प्रयोग  औधोगिक कार्य ,कृषि कार्य तथा रेलवे का संचालन करने के लिए करेंगे | जिससे कि देश का संतुलित विकास हो सके |

निष्कर्षत: हम यह कह सकते हैं कि आर्थिक समस्या मुख्यत: मनुष्य की असीमित आवश्यकता,संसाधनों की दुर्लभता एवं संसाधनों का विकल्प के तौर पर प्रयोग होने की सम्भावना होने के कारण ही उत्पन्न होती है

  1. अर्थव्यवस्था की केंद्रीय समस्या से आप क्या समझते हैं ?

उत्तर :- संसाधनों को  विकल्प के तौर पर विभिन्न कार्यों में बांटने /वितरण  करने से सम्बंधित जो समस्या एक अर्थव्यवस्था के समक्ष उत्पन्न होती है उसे अर्थव्यवस्था की केन्द्रीय समस्या कहते है |

ये मुख्यतः तीन प्रकार की होती है :-:-

i. क्या उत्पादन किया जाए

!!  कैसे उत्पादन किया जाए

iii. किसके लिए उत्पादन किया जाए

इसके अतिरिक्त निम्नलिखित दो समस्याओं को भी अर्थव्यवस्था की केन्द्रीय समस्या के अंतर्गत सम्मिलित किया गया है :-

  1. संसाधनों का पूर्ण उपयोग कैसे हो ?
  2. संसाधनों का पूर्ण विकास कैसे हो ?
  3. अर्थव्यवस्था की केन्द्रीय समस्याएं कौन कौन सी हैं ? उनका उल्लेख करें |

उत्तर- साधनों के वितरण से सम्बंधित जो समस्या एक अर्थव्यस्था के समक्ष उत्पन्न होती है उसे समान्यत: अर्थव्यस्था की केन्द्रीय समस्या कहा जाता है|

ये मुख्यत: तीन प्रकार की होती हैं ,जिनका विवरण क्रमश: निम्नवत है :-

  1. क्या उत्पादन किया जाए :- अर्थव्यस्था की पहली केन्द्रीय समस्या का सम्बन्ध उपभोक्ता वस्तु एवं पूंजीगत वस्तु के बीच चयन  से है | अर्थात इसके अंतर्गत एक अर्थव्यवस्था को यह तय करना पड़ता है कि वह उपभोता वस्तु ( कलम ,बैग ,जींस पेंट , मोबाइल फ़ोन ) का कितनी मात्रा में उत्पादन करे एवं पूंजीगत वस्तु ( भारी मशीन, उपकरण, ट्रैक्टर ) का कितनी मात्रा में उत्पादन करे जिससे की देश के विकास को सही दिशा में ले जाया जा सके |
  2. कैसे उत्पादन किया जाए :- अर्थव्यस्था की दूसरी केन्द्रीय समस्या का सम्बन्ध उत्पादन की तकनीक के चयन से है | वास्तव में एक अर्थव्यस्था में उत्पादन का कार्य दो तकनीकों (a) श्रम-प्रधान तकनीक एवं (b) पूंजी-प्रधान तकनीक के माध्यम से किया जाता है | अर्थव्यस्था इन दोनों तकनीकों का प्रयोग/चयन विवेकपूर्ण ढंग से करने का प्रयास करती है क्योंकि इससे अर्थव्यस्था के विकास को बढावा मिलता है लेकिन यदि वह ऐसा नहीं करती है और केवल एक ही तकनीक के प्रयोग पर जोर देती है तो अर्थव्यवस्था का विकास आशा के अनुरूप नहीं हो पायेगी |
  • उत्पादन किसके लिए किया जाए :- संसाधनों की सीमितता के कारण एक अर्थव्यवस्था व्यक्ति की सभी आवश्यकताएं को  पूरी नहीं कर पाती हैं वास्तव में  एक अर्थव्यवस्था में आर्थिक आधार पर  दो वर्ग अवश्य  देखने को मिलते हैं a) अमीर b) गरीब | सामजिक न्याय की स्थापना करने के लिए  गरीब वर्ग के लोगों के लिए अधिक से अधिक वस्तुओं का उत्पादन किया जा सकता है  लेकिन ऐसा करने पर उत्पादकों को हानि होने की संभावना बढ़ जाती है फलस्वरूप निवेश भी घट जाता है और GDP कम हो जाती है यही कारण है कि एक अर्थव्यवस्था के समक्ष हमेशा सामजिक न्याय एवं GDP के बीच चयन की समस्या उत्पन्न हो जाती है |

उपर्युक्त समस्याओं के अतिरिक्त  निम्नलिखित दो समस्याओं को भी अर्थव्यवस्था के केन्द्रीय समस्या के अंतर्गत सम्मिलित किया गया है :-                                          i. संसाधनों का पूर्ण उपयोग कैसे हो ? :-  एक अर्थव्यवस्था में  उत्पति के साधनों का प्रयोग  उनकी क्षमता के अनुरूप किया जाना चाहिए  ताकि उनकी योग्यता का पूरा इस्तेमाल हो सके | लेकिन विशेष कर विकासशील देशों की अर्थव्यवस्थाओं में रोजगार के अवसरों की कमी के कारण  संसाधनों का पूर्ण उपयोग नहीं हो पाता है और अर्थव्यवस्था को इसका नुकसान उठाना पड़ता है|

  1. संसाधनों का पूर्ण विकास कैसे हो ? :- गरीब एवं पिछड़ी अर्थव्यवस्थाओं में पुरानी तकनीकों के प्रयोग एवं नवीन तकनीकों की अनुपलब्धता के कारण बड़ी मात्रा में उपलब्ध खनिज संसाधनों का दोहन नहीं हो पाता है फलस्वरूप GDP भी कम हो जाती है है रोजगार की संभावनाएं भी समाप्त हो जाती है जिसके कारण उत्पत्ति के साधनों का भी गुणात्मक सुधार नहीं हो पाता है |

इस प्रकार यह स्पस्ट है  कि उपरोक्त सभी   केन्द्रीय समस्याएँ  संसाधनों की सीमितता के कारण ही उत्पन्न होती हैं जो हमें अधिकतम संतुष्टि प्राप्त करने हेतु संसाधनों का विकल्प के तौर पर  चयन करने लिए मजबूर करती है , चाहे वह विकासशील देश हो  या  विकसित देश की अर्थव्यवस्था ही क्यों न हो |

5  अवसर लागत (opportunity cost) क्या है ? समझाएँ

उत्तर- उपलब्ध विकल्पों में से दूसरे सर्वश्रेष्ठ विकल्प का मूल्य जिसका परित्याग किया जाता है ,उसे अवसर लागत कहते हैं |

अवसर लागत की धारणा को निम्न तालिका द्वारा स्पष्ट किया जा सकता है :-

पद/नौकरी  

वेतन (प्रति महीना)

 

a. इंजीनियर 70,000
b .शिक्षक 50,000
c. क्लर्क 30,000

उपर्युक्त तालिका के सन्दर्भ में मान लिया कि राकेश नामक व्यक्ति को नौकरी के तीन अवसर प्राप्त होते हैं | तलिकानुसार  स्वाभाविक तौर पर वह इंजीनियर की नौकरी करना पसंद करेगा क्योंकि उसे इस नौकरी को करने पर बाकी दोनों विकल्पों की तुलना में सबसे अधिक वेतन प्राप्त हो रही है |

लेकिन यहाँ पर तीनों विकल्पों में से दूसरा सर्वश्रेष्ठ विकल्प शिक्षक की नौकरी है जहाँ पर राकेश को 50,000 रुपया प्रति महीना वेतन प्राप्त होती परंतु वह इसका परित्याग कर देता है अत: यहाँ पर इंजीनियर बनने की अवसर लागत 50,000 रूपये होगी |

  1. सीमांत अवसर लागत (marginal opportunity cost ) की धारणा को स्पष्ट कीजिये ?

उत्तर – किसी वस्तु के उत्पादन में एक अतिरिक्त इकाई की वृद्धि करने पर दूसरी  वस्तु की  उत्पादन मात्रा  में जितनी कमी आती है उसे पहली वस्तु की  सीमांत अवसर लागत कहते हैं |

सीमांत अवसर लागत की धारणा को निम्न तालिका द्वारा स्पष्ट किया जा सकता है :-

गेहूँ (उत्पादन टन में ) चावल (उत्पादन टन में)
4 टन 10 टन
5 टन 7 टन

उपर्युक्त तालिका के सन्दर्भ में  मान लिया कि एक किसान प्रारंभिक स्थिति में 1 एकड़ जमीन(खेत ) पर 4 टन गेहूँ तथा 10 टन चावल का उत्पादन करता है | अब माना की उसी खेत पर उसी ढंग की तकनीक का इस्तेमाल करते हुए वह गेहूँ के उत्पादन में एक अतिरिक्त इकाई की वृद्धि करती है तो उसके फलस्वरूप चावल का उत्पादन घटकर 7 टन  हो जाती है तो  यहाँ पर गेहूँ के उत्पादन में एक अतिरिक्त इकाई की वृद्धि होने की सीमांत अवसर लागत 3 टन चावल के  बराबर होगी |

  1. उत्पादन सम्भावना वक्र (production possibility curve) क्या है ? स्पष्ट कीजिये |

उत्तर- दो वस्तुओं के संभावित संयोगों को दर्शाने वाली वह वक्र जिसे  दिए हुए साधन एवं स्थिर तकनीकी दशाओं के अंतर्गत पूर्ण रोजगार की अवस्था में  अधिकतम सीमा तक उत्पादित किया जा सकता है उसे उत्पादन सम्भावना वक्र कहते है |

यह वक्र ऋणात्मक ढाल वाली होती है जो मूल बिंदु की ओर नतोदर होती है |इस वक्र की प्रकृति को निम्न तालिका एवं चित्र के द्वारा स्पष्ट किया जा सकता है :-

संयोग गेहूँ (उत्पादन टन में ) कपड़ा(उत्पादन टन में)
A 12 0
B 10 2
C 6 4
D 0 6

 

चित्र :-

तालिका एवं चित्र से स्पष्ट है की संयोग A पर 12 टन गेहूँ एवं 0 टन कपड़ा  का उत्पादन होता है ,संयोग D पर 6 टन कपड़ा एवं 0 टन गेहूँ का उत्पादन होता है | ये दोनों संयोग उत्पादन की अधिकतम अर्थात चरम सीमाओं को दर्शा रही हैं | संयोग B पर 10 टन गेहूँ एवं 2 टन कपड़ा का तथा संयोग C पर 6 टन गेहूँ एवं 4 टन कपड़ा का उत्पादन होता है |अब यदि इन सभी संयोगों को एक रेखा द्वारा  मिला दिया जाय तो हमें उत्पादन सम्भावना वक्र प्राप्त होगी जो मूल बिंदु की ओर नतोदर रहती है | यह ऐसा इसलिए होता है क्योंकि जब हम कपड़ा के उत्पादन में उत्तरोत्तर वृद्धि करते हैं तो गेहूं  के उत्पादन में पहले की तुलना में अधिक तेजी से कमी आने लगती है |

  1. उत्पादन संभावना वक्र की मान्यताओं को लिखें ?

उत्तर – उत्पादन सम्भावना वक्र की धारणा कुछ  मान्यताओं पर आधारित है |ये  हमें इस वक्र की प्रकृति को समझने में सहयोग करती हैं जो निम्नवत है :-

  1. केवल दो वस्तुओं का उत्पादन होना चाहिए |
  2. उत्पादन तकनीक स्थिर होना चाहिए |
  • पूर्ण रोजगार की अवस्था हो |
  1. साधन सीमित एवं स्थिर होना चाहिए
  2. अल्पकाल वाली समय अवधि उपस्थिति |
  3. उत्पति के साधन सभी वस्तुओं को बनाने में समान रूप से निपुण नहीं होते |
  4.    9. उत्पादन सम्भावना वक्र की विशेषताओं को लिखें ?

उत्तर – उत्पादन सम्भावना वक्र दो वस्तुओं के संभावित संयोगों को प्रदर्शित करने वाली वक्र होती है जिसे स्थिर तकनीकी दशाओं के अंतर्गत पूर्ण रोजगार की अवस्था में अधिकतम सीमा तक उत्पादित  किया जा जा सकता है |

उत्पादन सम्भावना वक्र मूलतः आर्थिक समस्या को दर्शाती है  जिसकी   मुख्यतः निम्नलिखित विशेषताएं हैं :-

  1. उत्पादन सम्भावना वक्र ऋणात्मक ढाल वाली होती है :– उत्पादन संभावना वक्र की धारणा के अनुसार जब एक वस्तु के उत्पादन को बढाया जाता है तो दूसरी वस्तु के उत्पादन में कमी आने लगती है  अर्थात एक विपरीत सम्बन्ध वाली  स्थिति उत्पन्न होने लगती है यही कारण है कि उत्पादन सम्भावना वक्र ऋणात्मक ढाल का रूप धारण कर लेती है |
  2. उत्पादन सम्भावना वक्र मूल बिंदु की ओर नतोदर होती है :- यह वक्र मूल बिंदु की ओर नतोदर होती है | क्योंकि जब एक वस्तु के उत्पादन को बढ़ाया जाता है तो दूसरी वस्तु के उत्पादन में पहले की तुलना में अधिक तेजी से कमी आने लगती है | ऐसा इसलिए होता है क्योंकि उत्पत्ति के साधनों को उनकी विशेषज्ञाता के अनुरूप जिस काम में लगाया गया था उसे हटाकर दूसरे काम में लागाया गया जिसके कारण उनकी विशेषज्ञता भंग हो जाती है |
  3. 10. उपभोक्ता वस्तु से आप क्या समझते हैं ?

उत्तर – ऐसी वस्तुएं जिनका उपभोग / प्रयोग मनुष्य की आवश्यकताओं को पूरा करने के लिए  प्रत्यक्ष तौर पर किया जाता है उन्हें उपभोक्ता वस्तुएं कहा जाता है | जैसे :- कलम , मोबाइल फोन ,हाथ घड़ी, जींस पैन्ट, साईकिल इत्यादि |

  1. पूंजीगत वस्तु से आप क्या समझते हैं ?

उत्तर –  उत्पादकों की वे स्थायी संपत्तियां जिनका प्रयोग लम्बे समय तक उत्पादन कार्य में किया जाता है ,जो काफी उच्च मूल्य की होती हैं और जो सीधे तौर पर मनुष्य की आवश्यकता को पूरा नहीं करती हैं  उन्हें पूंजीगत वस्तुएं कहा जाता है | इन वस्तुओं की मांग प्राय: उत्पादकों द्वारा की जाती है |जैसे – प्लांट ,भारी मशीन एवं उपकरण , ट्रेक्टर , JCB मशीन इत्यादि |

  1. श्रमप्रधान तकनीक क्या है ?

उत्तर वह तकनीक जिसमें उत्पादन कार्य को संपादित करने के लिए  शारीरिक श्रम की अधिक मात्रा का प्रयोग किया जाता है ,उसे श्रम-प्रधान तकनीक कहते हैं |इसमें मशीन एवं उपकरणों का प्रयोग  कम मात्रा में ही किया जाता है  जैसे – कृषि कार्य |

  1. पूंजी-प्रधान तकनीक क्या है ?

उत्तर – वह तकनीक जिसमें उत्पादन कार्य को संपादित करने के लिए श्रम की तुलना में  मशीन एवं उपकरणों का अधिक मात्रा में प्रयोग किया जाता है ,उसे पूंजी-प्रधान तकनीक कहते हैं |जैसे – अत्याधुनिक कारों का निर्माण |

  1. अर्थशास्त्र को परिभाषित कीजिए ?

उत्तर- अर्थशास्त्र  वह विज्ञान है जिसके अंतर्गत सीमित संसाधनों के वैकल्पिक प्रयोग एवं वितरण के सम्बन्ध में मनुष्य के व्यवहार का अध्ययन किया जाता है |

  1. संसाधन की विशेषताओं को लिखें ?

उत्तर- संसाधनों की मुख्यत: निम्नलिखित विशेषताएं हैं :-

  1. a) मानवीय आवश्यकता की तुलना में संसाधन सीमित होती हैं |
  2. b) संसाधनों का वैकल्पिक प्रयोग होता है |
  3. दुर्लभता से क्या अभिप्राय है ?

उत्तर- दुर्लभता का अर्थ है :-पूर्ति की तुलना संसाधनों की मांग का अधिक होना |

  1. चयन की समस्या क्यों उत्पन्न होती है ?

उत्तर- चयन की समस्या मुख्यत: दो कारणों से उत्पन्न होती है :-

  1. a) मानवीय आवश्यकता की तुलना में संसाधन सीमित होने के कारण |
  2. b) संसाधनों का वैकल्पिक प्रयोग हो सकने की संभावना होने के कारण |
18.अर्थव्यवस्था से आप क्या समझते हैं ?

उत्तर- अर्थव्यवस्था वह ढांचागत व्यवस्था है जिसके अंतर्गत  एक क्षेत्र के लोग विभिन्न प्रकार की आर्थिक क्रियाओं का सम्पादन करती है एवं अपना जीविकापार्जन करती हैं |

 

THE END

 

 

 

 

 

 

 

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