अर्थशास्त्र का परिचय
अर्थशास्त्र के विद्यार्थी सबसे पहले यह जानना चाहते हैं कि आखिर अर्थशास्त्र है क्या अथवा अर्थशास्त्र के अंतर्गत हम क्या अध्ययन करते हैं। सर्वप्रथम हमें यह जान लेना चाहिए की अर्थशास्त्र एक विज्ञान है हमें विज्ञान की परिभाषा की जानकारी आवश्यक है। किसी विषय के क्रमबद्ध ज्ञान की प्राप्ति के लिए कारण एवं परिणामों का निरूपण किया जाता है, जैसे विज्ञान के अंतर्गत हम यदि किसी पत्थर को हवा में ऊपर की ओर फेंकते हैं तो वह पुनः नीचे जमीन पर गिर जाता है यहां पर पत्थर को ऊपर की ओर फेंकना कारण है एवं पत्थर का नीचे की ओर गिरना गुरुत्वाकर्षण बल का परिणाम है। ठीक इसी प्रकार रसायन शास्त्र बतलाता है कि एक निश्चित तापक्रम एवं दबाव पर यदि दो हिस्से हाइड्रोजन तथा एक हिस्से ऑक्सीजन मिला दिया जाए तो यह निश्चय ही पानी बन जाता है लेकिन अर्थशास्त्र में नियम के साथ यह निश्चित नहीं पाए जाते हैं उदाहरण के लिए अर्थशास्त्र में मांग का नियम यह निश्चित रूप से नहीं बतला सकता है कि मूल्य में परिवर्तन के फलस्वरुप मांग में कितना परिवर्तन होगा लेकिन फिर भी प्रश्न उठता है कि अर्थशास्त्र आखिर है क्या। किसी ने इसे यथार्थवादी विज्ञान कहा है तो किसी ने इसे आदर्शवादी विज्ञान कहा है ।अर्थात अर्थशास्त्र है क्या अथवा अर्थशास्त्र के अंतर्गत हम क्या अध्ययन करते हैं वास्तव में अर्थशास्त्र की परिभाषा को लेकर विद्वानों में काफी मतभेद है और इसकी कोई एक सर्वमान्य परिभाषा नहीं दे सकते हैं, फिर भी हम यह समझ सकते हैं कि अर्थशास्त्र किन बातों की जानकारी देता है ।
इस संबंध में निम्नलिखित कर धारणाएं प्रस्तुत की गई है –
(A) धन की धारणा
(B) कल्याण की धारणा
(C) दुर्लभता की धारणा
(D) विकास की धारणा
धन की धारणा – प्रोफेसर एडम स्मिथ
प्राचीन अर्थशास्त्रियों के अनुसार अर्थशास्त्र का मौलिक संबंध धन से है प्राचीन अर्थशास्त्रियों में सबसे प्रमुख एडम स्मिथ है जिन्हें अर्थशास्त्र का जनक भी कहा जाता है एडम स्मिथ ने सर्वप्रथम 1776 ईस्वी में अर्थशास्त्र पर एक पुस्तक जारी किया जिसका नाम – “An Enquiry in to the Nature and Causes of Wealth of Nations.”
एडम स्मिथ ने अर्थशास्त्र की परिभाषा इस प्रकार दी है – “अर्थशास्त्र संपत्ति का विज्ञान है ।
Adam Smith के अनुसार धनोपार्जन संबंधी क्रियाओं का अर्थ धन का उत्पादन, विनिमय, वितरण और उपभोग संबंधी क्रियाओं से है। अन्य प्राचीन अर्थशास्त्रियों ने भी एडम स्मिथ की परिभाषा का समर्थन किया है, रिकॉर्डों , जे एस मिल, जे बी से, वाकर इत्यादि अर्थशास्त्रियों के नाम प्रमुख है ।
आलोचना –
एडम स्मिथ की परिभाषा को देखने से यह प्रतीत होता है कि उसकी परिभाषा सही है लेकिन कई अर्थशास्त्रियों के द्वारा इसकी परिभाषा की आलोचना की गई है, जैसे रस्किन विलियम्स मारिश आदि अर्थशास्त्रियों ने इसकी परिभाषा को शैतान का धर्मशास्त्र, निकृष्ट विज्ञान, कुबेर की पूजा, रोटी मक्खन का विज्ञान आदि बुरे नाम की संज्ञा दी है । वास्तव में एडम स्मिथ की परिभाषा धन की मानवीय क्रियाओं का उद्देश्य अथवा साध्य मानती है, जबकि धन मानव कल्याण का एक साधन है ।
कल्याण की धारणा – प्रोफेसर मार्शल
प्रोफेसर मार्शल ने अर्थशास्त्र में मनुष्य तथा उसके कल्याण को प्रमुख स्थान दिया है और प्राचीन अर्थशास्त्रियों के परिभाषाओं की त्रुटियों को दूर करने की चेष्टा की है । मार्शल ने अपनी सुप्रसिद्ध पुस्तक “PRIBCIPLES OF ECONOMICS” में मार्शल की परिभाषा इस प्रकार दी है – “अर्थशास्त्र जीवन के साधारण व्यवसाय में मनुष्य के कार्यों का अध्ययन है यह मनुष्य के उन व्यक्तिगत एवं सामाजिक कार्यों की जांच करता है जिसका कल्याण के भौतिक साधनों की प्राप्ति तथा उपयोग से घनिष्ठ संबंध है ।“ प्रोफेसर मार्शल की परिभाषा को समर्थन करने वाले पीगू , बेवरीज , जे एन केन्स , एली आदि है ।
आलोचना
विभिन्न अर्थशास्त्रियों ने इसकी आलोचना इस प्रकार से की है- मार्शल की परिभाषा को देखने से यह स्पष्ट होता है कि अर्थशास्त्र केवल भौतिक साधनों से है, लेकिन अर्थशास्त्र का संबंध केवल भौतिक साधनों से जोड़ना वास्तव में इसके अध्ययन के क्षेत्र को सीमित कर देता है क्योंकि अब ऐसी क्रियाएं इसके क्षेत्र से बाहर हो जाती है तथा इस परिभाषा की सबसे दुर्लभ पक्ष या कमजोर पक्ष साधन रहा है ।
दुर्लभता की धारणा – प्रोफेसर रॉबिंस
प्रोफेसर रॉबिंस ने अपनी सुप्रसिद्ध पुस्तक An Eassay on the Nature and Significance of Economics Science जो 1932 ईस्वी में प्रकाशित हुई, उसमें प्रोफेसर रॉबिंस ने अर्थशास्त्र की परिभाषा इस प्रकार से दी है – अर्थशास्त्र वह विज्ञान है जो साध्य एवं सीमित साधनों जिनके वैकल्पिक प्रयोग होता है के संबंध के रूप में मानव आचरण का अध्ययन करता है ।
प्रोफेसर रॉबिंस की परिभाषा के मुख्य तत्व निम्नलिखित हैं-
- मनुष्य की आवश्यकता अनंत है
- उन आवश्यकताओं को पूर्ति करने के साधन सीमित है
- परंतु सभी आवश्यकता एक समान प्रबल एवं महत्वपूर्ण नहीं होती
- साधनों का वैकल्पिक प्रयोग हो सकता है ।
प्रोफेसर रॉबिंस की परिभाषा के इन चार तत्वों को देखने से यह स्पष्ट होता है कि हमारी आवश्यकता है अनंत है और उनको पूर्ति करने के साधन सीमित है तथा इन साधनों का वैकल्पिक प्रयोग हो सकता है । अतः ऐसी अवस्था में व्यक्ति को यह चयन करना पड़ता है कि वह अपने साधनों को किनआवश्यकता पर खर्च करें, जो आवश्यकता अधिक तीव्र एवं महत्वपूर्ण होती है हम उसी का चयन करते हैं और इसे एक उदाहरण द्वारा स्पष्ट किया जा सकता है-
मान लिया जाए की एक विद्यार्थी के पास ₹500 है उसे पुस्तक खरीदने की आवश्यकता है तथा सिनेमा देखने की भी आवश्यकता है साथ ही उसे कमीज भी खरीदनी है । अब वह अपने 500 रुपए को किस पर खर्च करें अथवा इन आवश्यकताओं में से वह किसे चुने, यह समस्या उसके सामने आती है इस चयन के प्रश्न को सुलझाने के लिए आवश्यकताओं की तीव्रता पर तुलनात्मक अध्ययन करना पड़ेगा और जो आवश्यकता सबसे अधिक तीव्र होगी विद्यार्थी अपने रुपए को इस पर खर्च करेगा । उपयुक्त उदाहरण में विद्यार्थी के लिए पुस्तक खरीदने की आवश्यकता सबसे पहले अधिक तीव्र है अब वह अपने साधन को इसी पर सबसे पहले खर्च करेगा । इस प्रकार हम देखते हैं कि अर्थशास्त्र में इसी चुनाव का अध्ययन किया जाता है ।
आलोचना
कुछ अर्थशास्त्रियों ने इसकी परिभाषा की आलोचना की है जैसे विकासवादी अर्थशास्त्री ।
निष्कर्ष
प्रोफेसर रॉबिंस की परिभाषा से यह स्पष्ट होता है कि उन्होंने अर्थशास्त्र को एक यथार्थवादी विज्ञान माना है ना कि आदर्शवादी विज्ञान। उन्होंने अर्थशास्त्र में आर्थिक एवं गैर आर्थिक क्रियाओं तथा भौतिक एवं भौतिक साधनों के बीच के अंतर को समाप्त कर दिया है । प्रोफेसर रॉबिंस की परिभाषा कल्याणकारी ना होकर विश्लेषणात्मक है और इसलिए यह अधिक यथार्थ एवं आर्थिक दृष्टिकोण से परिपूर्ण है । इस प्रकार प्रोफेसर रॉबिंस ने मार्शल के अनेक त्रुटियों को समाप्त करने की चेष्टा की है ।
विकास की धारणा – प्रोफेसर सैम्युलसन
कई आधुनिक अर्थशास्त्रियों ने प्रोफेसर रॉबिंस की दुर्लभता की परिभाषा के अर्थ में कुछ संशोधनों के साथ अर्थशास्त्र की परिभाषा दी है, उसके अनुसार अर्थशास्त्रियों को यह भी सुझाव देना चाहिए कि किस प्रकार समाज के दुर्लभ साधनों में वृद्धि की जानी चाहिए ताकि अधिक से अधिक आवश्यकताओं की संतुष्टि कर बेहतर जीवन स्तर को प्राप्त किया जा सके और आर्थिक विकास को बढ़ावा मिले । दुर्लभता से संबंधित परिभाषा में सुप्रसिद्ध अमेरिकन अर्थशास्त्री प्रोफेसर सैम्युलसन की परिभाषा सबसे अधिक व्यापक एवं विकास की धारणा पर आधारित है-
उसके अनुसार अर्थशास्त्र इस बात का ध्यान करता है की मुद्रा के प्रयोग के बिना वस्तुओं के कलगत उत्पादन के लिए व्यक्ति एवं समाज उत्पादक साधनों के नियोजन का किस प्रकार चुनाव करते हैं और समाज के विभिन्न लोगों एवं वर्गों में उनकी अब तथा भविष्य में उपभोग के लिए किस प्रकार वितरण करते हैं ।
आलोचना
इस प्रकार प्रोफेसर सैम्युलसन की परिभाषा की कई विशेषताएं हैं फिर भी यह प्रोफेसर रॉबिंस की परिभाषा पर ही आधारित है, हां यह बात अवश्य है कि प्रोफेसर रॉबिंस की परिभाषा का विस्तारित करके प्रोफेसर सैम्युलसन ने इसे और अधिक विस्तारित बना दिया है l
अर्थशास्त्र
परिचय
आधुनिक समय में अर्थ्शास्त्र्यो ने अर्थशास्त्र की विषय वस्तु को दो भागो मे विभक्त किया है –
(1 ) व्यष्टि अर्थशास्त्र – Micro Economics
( 2 ) समष्टि अर्थशास्त्र – Macro Economics
इन दोनों शब्दों की रचना एव इनका प्रयोग सर्वप्रथम 1933 ई. में ओस्लो विस्वविद्यालय के प्रो. रैग्नर फ़्रिस ने किया था और उसी समय से ये शव्द इतने लोकप्रिय हुआ कि आज विश्व के सभी अर्थशास्त्री इनका प्रयोग करते है साथ ही अर्थशास्त्र के जनक एडम स्मिथ को कहा जाता है I
व्यष्टि अर्थशास्त्र
व्यष्टि अर्थशास्त्र के अंतर्गत अर्थव्यवस्था की व्यक्तिगत इकाई जैसे – व्यक्तिगत उपभोक्ता, व्यक्तिगत फॉर्म, व्यक्तिगत उधोग, विशिष्ट मूल्य इत्यादि का अध्ययन करते हैं ।
व्यष्टि अर्थशास्त्र इस बात का अध्ययन करता है कि कैसे व्यक्ति , फार्म और बाजार वस्तुओ और सेवाओ का उत्पादन करने के लिए बात चित करता है । व्यष्टि अर्थशास्त्र विशलेषण में उत्पादको और उपभोक्ताओ के बीच संबंधो मूल्यों , आपूर्ति और मांग ,अधिकतम लाभ ,आदि की जाँच करना शामिल है ।
व्यष्टि अर्थशास्त्र की परिभाषा
प्रो. चेंबरलिंन के अनुसार – “व्यक्तिगत मॉडल पूर्णता व्यक्तिगत ब्याख्या पर आधारित है तथा केवल अंतर व्यक्तिगत संबंधों का अध्ययन करता है ।“
प्रो. मेहता के अनुसार – “व्यक्ति अर्थशास्त्र इस बात का अध्ययन करता है कि वस्तुओं एवं सेवाओं का मूल्य किस प्रकार निर्धारित होते हैं ।“
प्रो. बोर्डिंग के अनुसार – “व्यष्टि अर्थशास्त्र विशिष्ट फॉर्म, विशिष्ट विचारों, व्यक्तिगत मूल्यों, मजदूरियो, आयो, व्यक्तिगत उधोगो एवं विशिष्ट वस्तुओं का अध्ययन है ।“
उपरोक्त परिभाषाओं को देखने से यह स्पष्ट होता है कि व्यक्ति अर्थशास्त्र के अंतर्गत हम संपूर्ण में से उनकी कुछ भागों का ही अध्यन किया जाता है । जैसे व्यक्तिगत आय , व्यक्तिगत फॉर्म इत्यादि ।
उत्पत्ति–
व्यष्टि को अंग्रेजी में MICRO के नाम से जानते हैं तथा MICRO शब्द की उत्पत्ति ग्रीक भाषा के MIKROS शब्द से हुई है जिसका अर्थ होता है छोटा ।
समष्टि अर्थशास्त्र
समष्टि अर्थशास्त्र में हम अर्थब्यवस्था कि संपूर्ण में अध्ययन करते है । यह अर्थशास्त्र की वह शाखा है जिसमें अर्थब्यवस्था का किसी विशेष इकाई का अध्ययन नहीं करके वरन सभी इकार्यों का उनकी समग्रता के रूप में अध्ययन करते हैं जैसे- कुल रास्ट्रीय आय, कुल उत्पादन, कुल रोजगार, कुल उपभोग, बचत एवं विनियोग, कुल मांग एवं पूर्ती इत्यादि । इसलिए समष्टि अर्थशास्त्र को कुल का अर्थशास्त्र भी कहा जाता है क्योंकि इसके अंतर्गत मुख्यत संपूर्ण आय एवं रोजगार का अध्ययन होता है । अत: इसे आय सिद्धांत एवं रोजगार सिद्धांत भी कहा जाता है।
समष्टि अर्थशास्त्र इस बात का अध्ययन करता है कि कैसे राष्ट्रीय अर्थव्यवस्था समय के माध्यम से एक दुसरे के साथ बात चित करता है। व्यापक आर्थिक विशलेषण में बेरोजगारी दर या ब्यापार संतुलन जैसे दीर्घकालिक रुझानो की जाँच करना शामिल है, ताकि यह समझा जा सके कि राष्ट्रीय अर्थव्यवस्थाओ में परिवर्तन अन्य देशो को कैसे प्रभावित करते है ।
समष्टि अर्थशास्त्र की परिभाषा
प्रो. बोर्डिंग के अनुसार :- “समष्टि अर्थशास्त्र आर्थिक व्यवस्था की विशिष्ट मदो का नहीं वरन उनके बड़े समूहो एवं औसतों का अध्ययन करता है । जिन्हें वह उपयोगी रूप में परिभाषित करता है तथा उनके संबंधों का परीक्षण करता है ।“
प्रो. चेंबरलिन के अनुसार :- “समष्टि अर्थशास्त्र में समष्टिगत मॉडल संपूर्ण संबंधो का अध्ययन करता है ।“
प्रो. मेहता के अनुसार :– समष्टि अर्थशास्त्र इस बात का अध्ययन करता है कि किस प्रकार रोजगार, कुल उत्पादन एवं विभिन्न साधनों के हिस्से निर्धारित होते हैं ।“
उत्पत्ति–
समष्टि को अंग्रेजी में MACRO के नाम से जानते हैं तथा MACRO शब्द की उत्पत्ति ग्रीक भाषा के MAKROS से हुआ है जिसका अर्थ होता है बड़ा ।
व्यष्टि अर्थशास्त्र एवं समष्टि अर्थशास्त्र में अंतर
व्यष्टि अर्थशास्त्र एवं समष्टि अर्थशास्त्र में निम्नलिखित अंतर पाए जाते हैं –
(1) व्यष्टि अर्थशास्त्र छोटा एवं समष्टि अर्थशास्त्र बड़ा होता है ।
(2) समष्टि अर्थशास्त्र में संपूर्ण का अध्ययन किया जाता है जबकि व्यष्टि अर्थशास्त्र में संपूर्ण में से किसी एक का अध्ययन किया जाता है ।
(3) व्यष्टि अर्थशास्त्र का क्षेत्र संकीर्ण होता है जबकि समष्टि अर्थशास्त्र का क्षेत्र विस्तृत होता है ।
(4) व्यष्टि अर्थशास्त्र में इस बात का अध्ययन किया जाता है कि किसी वस्तु या सेवा के मूल्य का निर्धारण किस प्रकार किया जाता है ।
अत: इसे मूल्य सिद्धांत भी कहा जाता है दूसरी और समष्टि अर्थशास्त्र में सामान्य मूल्य तल का अध्ययन किया जाता है ।
(5) व्यष्टि अर्थशास्त्र का विकास समष्टि अर्थशास्त्र से पहले हुआ है लेकिन समष्टि अर्थशास्त्र का विकास प्रोफ़ेसर केन्स की पुस्तक- “General Theory of Employment, Interest and Money” के प्रकाशन के बाद हुआ है ।
इस प्रकार से व्यष्टि अर्थशास्त्र और समष्टि अर्थशास्त्र में अंतर पाया जाता है ।
Very good Sir
THANKS SIR