Site icon YGT EDUCATION

भुगतान संतुलन और व्यापार संतुलन – Balance of Payment and Balance of Trade

Balance of Payment and Balance of Trade

भुगतान संतुलन / व्यापार संतुलन

Balance of Payment and Balance of Trade

व्यापार संतुलन

व्यापार संतुलन  किसी दो देशों के बीच आयात और निर्यात के बीच के अंतर को ही व्यापार संतुलन कहते हैं, इसमें केवल दृश्य मद को ही शामिल किया जाता है।

प्रोफेसर बेन्हम के अनुसार – किसी देश का व्यापार संतुलन एक दिए हुए समय में उसके निर्यात एवं आयत की मूल्य का संबंध है।

व्यापार संतुलन के प्रकार

व्यापार संतुलन दो प्रकार का होता है –

दृश्य मद – वस्तुएं        अदृश्य मद – सेवाएं

भुगतान संतुलन

किसी दो देशों के बीच आयात और निर्यात के बीच के अंतर को भुगतान संतुलन कहते हैं इसमें दृश्य एवं अदृश्य दोनों मदों को सम्मिलित किया जाता है।

प्रोफेसर बेन्हम के अनुसार “किसी देश का भुगतान संतुलन किसी दिए हुए समय में शेष विश्व के साथ उसके मौद्रिक लेने-डेनों का लेखा है।+

भुगतान संतुलन के प्रकार

भुगतान संतुलन दो प्रकार का होता है-

क्या भुगतान संतुलन सदा संतुलित होता है ?

भुगतान संतुलन एक खाते के समान होता है जिसके दो भाग होते हैं। वास्तव में यह एक प्रकार की स्थिति विवरण या चिट्ठा है जिसके आकलन क्रेडिट तथा विकलन डेबिट दो भाग होते हैं, अतः जिस प्रकार किसी चिट्ठे के आकलन एवं विकलन एक दूसरे के बराबर होते हैं उसी प्रकार भुगतान संतुलन के आकलन एवं विकलांग भी एक दूसरे के बराबर होते हैं इसलिए कहा जाता है कि भुगतान संतुलन सदा संतुलित रहता है।

इसे हम इस प्रकार से भी स्पष्ट कर सकते हैं-

इसमें किसी देश की वर्तमान आय उसके व्यय के बराबर होती है लेकिन यदि उसे देश का व्यय उसके आय से अधिक हो तो वह देश अपने आय और व्यय को समान करने के लिए वह देश किसी बैंक इंटरनेशनल मोनेटरी फंड या किसी खास व्यक्ति से ऋण लेगा और अपने आय में वृद्धि करेगा जिससे कि आय और व्यय बराबर हो जाए, दूसरी और यदि उसे देश का आय उसके वैसे अधिक हो तो वह देश किसी और देश से किसी वस्तु का आयात कर सकता है जिससे कि उसे देश का आय उसके व्यय के बराबर हो जाए यह आकलन और विकरण हमेशा बराबर होता है। इसलिए कहा जाता है कि भुगतान संतुलन सदा संतुलित रहता है।

  1. भुगतान संतुलन से आप क्या समझते हैं ?

उत्तर- वह खाता जिसमे एक निश्चित समय अवधि के दौरान एक देश का विश्व के अन्य देशों के साथ हुए समस्त आर्थिक लेन – देनों का लिखित एवं व्यवस्थित  हिसाब-किताब रखा जाता  है उसे भुगतान संतुलन कहते है |

भुगतान संतुलन लेखांकन की दृष्टि सदैव संतुलित रहती है परन्तु  आर्थिक दृष्टि से  यह संतुलित एवं असंतुलित दोनों हो सकती है इसके मुख्यत: दो घटक होते  हैं : (a) चालू खाता (b) पूंजी खाता | आर्थिक लेन – देनों का विवरण तैयार करते समय इन दोनों खातों के अंतर्गत सम्मिलित मदों में जो मद प्राप्ति को दर्शाती है उसे लेनदारी पक्ष में दर्शाया जाता है और जो मद भुगतान को दर्शाती है उसे देनदारी पक्ष में दर्शाया जाता है |

  1. भुगतान संतुलन में सम्मिलित मदें कौन- कौन सी हैं ?

उत्तर- भुगतान संतुलन में निम्नलिखित मदें सम्मिलित हैं :-

  1. दृश्य भौतिक वस्तुओं का आयात एवं निर्यात
  2. अदृश्य अर्थात सेवाओं का आयात एवं निर्यात
  3. पूंजीगत अंतरण ( capital transfer )
  4. एकपक्षीय अंतरण ( unilateral transfer)
  5. दृश्य भौतिक वस्तुओं(VISIBLE) से आप क्या समझते है ?

उत्तर- वे वस्तुएं जो किसी पदार्थ की बनी होती हैं , जिनका एक निश्चित आकार होता है , जिन्हें हम स्पर्श कर सकते हैं तथा जिन्हें हम देख भी सकते हैं उन्हें दृश्य भौतिक वस्तुएं कहा जाता है | जैसे:- मोबाइल फ़ोन , कार ,बाइक,बैग ,जीन्स पैंट, जूता इत्यादि |

  1. अदृश्य वस्तुओं(INVISIBLE) से आप क्या समझते हैं ?

उत्तर- वे वस्तुएं जो किसी पदार्थ की नहीं बनी होती हैं ,जिनका कोई निश्चित आकार नहीं होता है ,जिन्हें हम स्पर्श नहीं कर सकते हैं  और न ही देख सकते हैं उन्हें अदृश्य वस्तुएं कहा जाता है | जैसे:- इन्टरनेट सेवा ,बैंकिंग सेवा ,बीमा सेवा इत्यादि |

  1. पूंजी अंतरण(CAPITAL TRANSFER) से क्या अभिप्राय है ?

उत्तर- वे आर्थिक लेनदेन जिसके कारण व्यक्ति या सरकार की परिसंपत्ति अथवा  देयता(दायित्व ) प्रभावित होती है उन्हें पूंजी अंतरण कहा जाता है | जैसे ;- विदेशों से उधार लेना , विदेशी प्रत्यक्ष निवेश ( FDI), विदेशों को ऋण चुका देना, विदेश में जमीन खरीदना |

  1. एकपक्षीय अंतरण(UNILATERAL TRANSFER) क्या है ?

उत्तर- अन्य देश को किया जाने वाला वह भुगतान जिसके बदले में भुगतान करने वाले देश को कुछ भी प्राप्त नहीं होता है उसे एकपक्षीय अंतरण कहते हैं | जैसे :- दान देना , उपहार देना |

यह भुगतान सामान्यत: प्राकृतिक आपदा जैसे बाढ़ ,भूकंप ,आकाल,सुनामी आदि  से प्रभावित देशों के सन्दर्भ में ज्यादा  किया जाता है | जैसे :- राहत कार्य हेतु प्रभावित देश को आर्थिक एवं मानवीय  सहायता देना |

  1. भुगतान संतुलन की विशेषताओं को लिखें|

उत्तर – भुगतान संतुलन की मुख्यत: निम्नलिखित विशेषताएं हैं :-

  1. यह आयात – निर्यात से सम्बंधित भुगतानों एवं प्राप्तियों का क्रमबध्द लेखा होती है |
  2. यह सामान्यत: एक वर्ष का लेखा – जोखा होती है |
  3. यह अर्थव्यवस्था की वास्तविक तस्वीर पेश करती है
  4. यह काफी व्यापक है अर्थात यह दृश्य, अदृश्य के साथ साथ पूंजी अंतरण की मदों को भी शामिल करती है |
  5. इसमें दोहरी अंकन प्रणाली के आधार पर प्राप्तियों एवं भुगतानों का क्रमबध्द लेखा तैयार  किया जाता है |
  6. यह लेखांकन की दृष्टि से सदैव संतुलित रहती है |
  7. प्राप्तियों एवं भुगतानों में अंतर आने पर इसमें समायोजन का कार्य किया जाता है |
  8. भुगतान संतुलन के दो पक्ष कौन –कौन से हैं ?

उत्तर- भुगतान संतुलन में  समस्त प्राप्तियों एवं भुगतानों का लेखा – जोखा व्यवस्थित ढंग से क्रमश: निम्न दो पक्षों के अंतर्गत तैयार किया जाता है :-

  1. लेनदारी पक्ष :- इसमें उन प्राप्तियों को शामिल किया जाता है जो हमें विदेशों से प्राप्त होती हैं |
  2. देनदारी पक्ष :- इसमें उन भुगतानों को शामिल क्या जाता है जो हमें विदेशों को करना पड़ता है |
  1. भुगतान संतुलन दो मुख्य घटक कौन कौन से हैं ?

उत्तर : भुगतान संतुलन के दो मुख्य घटक हैं :-

  1. चालु खाता( CURRENT ACCOUNT)
  2. पूंजी खाता ( CAPITAL ACCOUNT)
  3. चालू खाता क्या है ? इसके मदों को लिखें |

उत्तर – वह खाता जिसमे वस्तुओं एवं सेवाओं के आयात – निर्यात तथा एकपक्षीय अंतरण का लेखा – जोखा रखा जाता है जो न तो कंपनी  या सरकार की परिसंपति को प्रभावित करते हैं और न ही कंपनी  या सरकार की देयता (दायित्व ) को प्रभावित करते  हैं उसे चालू खाता कहते हैं |

इस खाते में  विदेशों से प्राप्त चालू प्राप्तियों एवं देश से विदेशों को किये गए  चालू भुगतानों को शामिल किया जाता है | जिसमें  मुख्यत: निम्नलिखित मदों सम्मिलित है :-

  1. दृश्य वस्तुओं का आयात – निर्यात
  2. सेवाओं का आयात – निर्यात
  3. एकपक्षीय अंतरण ( UNILATERAL TRANSFER)

 11.पूंजी खाता क्या है ? इसके मदों को लिखें |

उत्तर-  वह खाता  जिसके अंतर्गत  एक देश का विश्व के विभिन्न  देशों के साथ हुए उन समस्त आर्थिक लेन- देनों का  हिसाब –किताब रखा जाता है जो कंपनी या सरकार की परिसंपति अथवा देयता को प्रभावित करते हैं उसे पूंजी खाता कहा जाता है |

इसके मुख्यत: निम्नलिखित मदें हैं :-

  1. विदेशों से उधार लेना
  2. विदेशों को ऋण देना
  3. विदेशी प्रत्यक्ष निवेश ( FDI)
  4. पोर्टफोलियो निवेश ( FPI )
  1. विदेशी प्रत्यक्ष निवेश ( FDI) क्या है ?

उत्तर- जब कोई  विदेशी निवेशक / कंपनी  हमारे देश में आकर किसी कंपनी में पैसा लगाती है और जिसके  फलस्वरूप वह  उस कंपनी के उत्पादन ,वितरण एवं क्षमता विस्तार की प्रक्रिया को प्रत्यक्ष तौर पर नियंत्रित करने लगती है  तो उसे विदेशी प्रत्यक्ष निवेश कहते हैं | जैसे :- एक विदेशी कंपनी द्वारा हमारे देश में फैक्ट्री स्थापित करना / जमीन खरीदना |

हमारे देश में किसी निवेश को विदेशी प्रत्यक्ष निवेश तभी माना जाएगा  जब कोई विदेशी कंपनी हमारे देश की कंपनी की कम से कम 10% या उससे अधिक शेयर खरीदती है |

  1. विदेशी पोर्टफोलियो निवेश ( FPI) क्या है ?

उत्तर- विदेशी निवेशक /कंपनी द्वारा हमारे देश की किसी कंपनी का शेयर खरीदना या उस पर पैसा लगाना विदेशी पोर्टफोलियो निवेश कहा जाता है | जैसे – सैमसंग द्वारा RELIANCE JIO के शेयर खरीदना |

लेकिन हमारे देश में किसी निवेश को विदेशी पोर्टफोलियो निवेश तभी माना  जाता है जब कोई विदेशी कंपनी हमारे देश की कंपनी की 10% से कम शेयर खरीदती है  |

  1. व्यापार संतुलन ( BALANCE OF TRADE) क्या हैं ?

उत्तर- दृश्य वस्तुओं के निर्यात मूल्य एवं दृश्य वस्तुओं के आयात मूल्य के अंतर को व्यापार संतुलन कहते हैं |

अर्थात :-

व्यापार संतुलन = दृश्य वस्तुओं के निर्यात मूल्य – दृश्य वस्तुओं के आयात मूल्य

व्यापार संतुलन अनुकूल एवं प्रतिकूल दोनों हो सकती है | इसे एक संकुचित धारणा माना जाता है क्योंकि यह सेवाओं एवं पूंजी अंतरण से सम्बंधित लेन-देनों को शामिल नहीं करती है |

  1. व्यापार संतुलन एवं भुगतान संतुलन में क्या अंतर है ?

उत्तर- व्यापार संतुलन एवं भुगतान संतुलन में निम्नलिखित अंतर है :-

      व्यापार संतुलन         भुगतान संतुलन
I. इसमें केवल दृश्य वस्तुओं के आयात एवं निर्यात  को शामिल किया जाता है | I. यह दृश्य वस्तुओं के साथ- साथ  ,सेवाओं ,उपहार ,पूंजी अंतरण को भी शामिल करती है |
II. यह एक संकुचित धारणा है | II. यह एक विस्तृत धारणा है |
III. यह अर्थव्यवस्था की वास्तविक दशा को पेश नहीं करती है | III. यह अर्थव्यवस्था की वास्तविक सही तस्वीर पेश करती है |
IV. यह अनुकूल एवं प्रतिकूल दोनों हो सकती है | IV. यह लेखांकन की दृष्टि से सदैव संतुलित रहती है |

 

  1. भुगतान संतुलन सदैव संतुलित रहती है कैसे ?

उत्तर – भुगतान संतुलन ,एक निश्चित समय अवधि के दौरान एक देश का  विश्व की अन्य देशों के साथ हुए समस्त आर्थिक लेन – देनों का व्यवस्थित रिकॉर्ड को दर्शाती है |

भुगतान संतुलन संतुलित रहती है क्योंकि इसके अंतर्गत विभिन्न मदों का जो विवरण तैयार किया जाता है उसमे दोहरी अंकन पध्दति का प्रयोग किया जाता है जिसमें सभी प्रविष्टियों को लेन-देन की प्रकृति के अनुसार  लेनदारी एवं देनदारी पक्ष के रूप में  तैयार किया जाता है |

विवरण तैयार करते समय लेनदारी एवं देनदारी दोनों  पक्षों को एक दूसरे के सामने लिखा जाता है जिसके कारण कुल लेनदारी की राशि एवं कुल देनदारी की राशि एक दूसरे के बराबर हो जाती है यही कारण है कि भुगतान संतुलन लेखांकन की दृष्टि से सदैव संतुलित रहती है अर्थात (R = P) |

परन्तु आर्थिक दृष्टि से यह सदैव संतुलित नहीं रहती यह असंतुलित भी हो सकती है अर्थात यह अनुकूल( R > P) अथवा प्रतिकूल(R < P) भी हो सकती है | जैसे- निर्यात की तुलना में  आयात ज्यादा होने पर चालू खाता में घाटा उत्पन्न जाना जिसके कारण भुगतान संतुलन प्रतिकूल हो जाती है |

इस घाटे को पूरा करने के लिए सामन्यत: पूंजी खाते के आधिक्य का प्रयोग किया जाता है उसी प्रकार पूंजी खाता में घाटा उत्पन्न होने पर चालू खाते के आधिक्य का प्रयोग किया जाता है इस प्रकार भुगतान संतुलन संतुलित हो ही जाती है |

  1. चालू खाता एवं पूंजी खाता में की अंतर है ?

उत्तर- चालू खाता एवं पूंजी खाता में निम्नलिखित अंतर है :-

     चालू खाता      पूंजी खाता
i. इसमें वस्तुओं एवं सेवाओं के आयात निर्यात तथा एकपक्षीय अंतरण का हिसाब –किताब रखा जाता है | i. इसमें देश से विदेशों की ओर तथा विदेशों से देश की ओर होने वाले पूंजी का प्रवाह ( CAPITAL TRANSFER) का हिसाब- किताब रखा जाता है |
II. यह खाता विशेष तौर उन आर्थिक  लेनदेनों का रिकॉर्ड रखती है जो  न तो परिसंपति को प्रभावित करती है और न ही देयता(दायित्व ) में परिवर्तन लाते हैं | II. यह खाता विशेष तौर पर  परिसंपत्ति या देयता को प्रभावित करने वाले आर्थिक लेनदेनों का रिकॉर्ड रखती है |
III. यह देश की शुद्ध आय को दर्शाती है | III. यह खाता देश की संपत्ति पर  मालिकाना हक़ में होने वाले परिवर्तन को दर्शाती है |
IV. इसमें शामिल लेनदेन चालू आय को प्रभावित करते हैं | IV. इसमें शामिल लेनदेन पूंजी के स्टॉक को प्रभावित करते हैं |
V. प्रमुख मद हैं : वस्तुओं एवं सेवाओं का आयात –निर्यात ,एक पक्षीय अंतरण | V. मुख्य मद हैं : विदेशी प्रत्यक्ष निवेश ,भारत द्वारा नेपाल को उधार देना ,विदेशों से ऋण लेना |

 

  1. भुगतान संतुलन के प्रतिकूल होने के कारणों का वर्णन करें |

उत्तर- भुगतान संतुलन के प्रतिकूल होने का अर्थ है :  प्राप्तियों की तुलना में विदेशों को किये जाने वाले  भुगतान का अधिक होना | यह स्थिति सामान्यत: चालू खाता में घाटा उत्पन्न होने के कारण होती है |

जब यह  घाटा बहुत अधिक हो जाती है तो  इसकी पूर्ति विदेशी ऋण लेकर अथवा विदेशी मुद्रा भण्डार में से विदेशी मुद्रा का प्रयोग कर की जाती है  जो  निश्चित रूप से किसी भी अर्थव्यवस्था के लिए काफी निराशाजनक होती है |

लेकिन वास्तव में इसके कई कारण हैं जो निम्नवत हैं :-

(a) विकास व्यय बहुत अधिक :- विकास कार्य हेतु गरीब एवं विकासशील देशों को मशीनों , उपकरणों तथा तकनीक की जरुरत पूरा करने  के लिए विकसित देशों पर निर्भर रहना पड़ता है जिसके कारण आयात की मात्रा बढ़ जाती  है |

(b) अत्यधिक महंगाई :- देश में महंगाई काफी बढ़ जाती है तो निर्यात पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है वहीं दूसरी ओर विदेशी वस्तुएं देश की वस्तुओं की तुलना सस्ती हो जाती हैं जिसके कारण आयात काफी बढ़ जाते हैं जो प्रतिकूल भुगतान संतुलन का कारण बन जाती है|

(c) व्यापार चक्र :- अर्थव्यवस्था में यदि व्यावसायिक क्रियाओं में अत्यधिक उतार –चढ़ाव देखने को मिले तो निवेशक निराश हो जाते है और  निर्यात को प्रोत्साहन नहीं मिल पाता है जो अंतत: आयात को बढ़ाने के लिए मजबूर कर देती है |

(d) सेवाओं का आयात :- पिछड़े देश विकसित देशों से स्वास्थ्य सेवा ,तकनीकी सेवा ,ज्ञान आदि  का बढ़ी मात्रा में आयात  करते हैं जिसके लिए उन्हें एक बहुत बढ़ी धनराशि खर्च करनी पड़ती है जो  भुगतान संतुलन में घाटे की स्थिति उत्पन्न कर देती है |

(e) सुरक्षा पर अत्यधिक व्यय :- विकासशील एवं गरीब देश प्रायः गृह युध्द या  राजनीतिक तनाव की स्थिति का सामना करते रहते हैं जिससे निपटने के लिए वे युद्ध सामग्री का आयात करने लगते हैं जो उनके भुगतान संतुलन की स्थिति को बिगाड़ देती है |

(f) राजनितिक अस्थिरता :- जब सरकारें अपने निर्धारित कार्यकाल को पूरा नहीं कर पाती है या चुनी हुई सरकार को जबरदस्ती गिरा दी जाती है तो देश में अराजकता की स्थिति उत्पन्न हो जाती है फलस्वरूप ,विदेशी निवेशक देश छोड़कर भागने लगते हैं निवेश की संभावनाएं धूमिल हो जाती हैं जिसके कारण अंतत: आयात में बढ़ोत्तरी होने लगती है |

(g) प्रदर्शन प्रभाव :- प्रदर्शन प्रभाव का अर्थ है लोगों में दिखावा प्रवृत्ति का होना | जब देश  की एक बहुत बढ़ी जनसंख्या इससे ग्रसित हो कर विदेशी वस्तुओं की मांग ज्यादा मात्रा में करने लगे तो देश को इनकी जरुरत पूरा करने के लिए इन वस्तुओं का  आयात करना पड़ेगा जो की अंतत: भुगतान संतुलन की सेहत को  पूरी तरह बिगाड़ देगी |

इस प्रकार यह स्पष्ट है कि आयातों में अत्यधिक वृद्धि के कारण ही भुगतान संतुलन में घाटे की स्थिति उत्पन्न हो जाती है अत: इस समस्या का समाधान करना है तो इसके लिए विकासशील एवं पिछड़े देशों को शिक्षा ,स्वास्थ्य ,शोध ,आधारसंरचना क्षेत्र का विकास करने के साथ – साथ विदेशी प्रत्यक्ष निवेश  को आकर्षित करते हुए विनिर्माण क्षेत्र को प्रोत्साहित करना चाहिए ताकि निर्यात अधिक से अधिक मात्रा में हो सके |

  1. विदेशी प्रत्यक्ष निवेश एवं विदेशी पोर्टफोलियो निवेश में क्या अंतर है ?

उत्तर- विदेशी प्रत्यक्ष निवेश एवं विदेशी पोर्टफोलियो निवेश में निम्नलिखित अंतर है :-

     विदेशी प्रत्यक्ष निवेश (FDI) विदेशी पोर्टफोलियो निवेश ( FPI)
I.इस प्रकार का निवेश विशेष रूप से  संपत्ति  पर किया  जाता है | I.यह निवेश सामान्यत: किसी कंपनी के शेयर पर किया जाता है
II. इससे  कंपनी पर प्रत्यक्ष तौर पर नियत्रण स्थापित की जा सकती है | | II.इससे कंपनी पर अप्रत्यक्ष तौर पर ही नियंत्रण रखा जा सकता है |
III.यह निवेश सामान्यत: दीर्घकाल के लिए किया जाता है | iii.इस प्रकार का निवेश सामान्यत: अल्पकाल के लिए ही किया जाता है
iv. इस प्रकार का निवेश बढ़ी कंपनियों / निवेशकों द्वारा ही  किया जाता है | iv. यह निवेश छोटे निवेशक भी सरलता से कर सकते हैं |

 

Read Also – विदेशी विनिमय दर

 

Exit mobile version