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विदेशी विनिमय दर /Foreign Exchange Rate

विदेशी विनिमय दर

एक देश का दूसरे देश के साथ व्यावसायिक एवं व्यापारिक संबंध होता है सभी देशों के अपने करेन्सी होते हैं, तथा भुगतान करने के लिए विभिन्न करेन्सी के बीच एक दर होती है जिससे विदेशी विनिमय दर या विनिमय दर कहते हैं।

विदेशी विनिमय बाजार

विदेशी विनिमय बाजार वह बाजार है जहां विभिन्न देशों की मुद्राओं का परस्पर व्यापार होता है। यहां मुद्राओं के परस्पर व्यापार का मतलब मुद्राओं की परस्पर् खरीद बिक्री से है दूसरे शब्दों में हम यह कह सकते हैं कि विदेशी विनिमय बाजार में मुद्राओं की मांग एवं पूर्ति की जाती है। विदेशी विनिमय बाजार निम्नलिखित तीन कायों का संपादन करता है।

विदेशी विनिमय बाजार के उपर्युक्त तीन कायों के संदर्भ में विदेशी विनिमय की मांग किसी देश के निवासियों द्वारा विदेशी मुद्राओं की मांग होता है जब लोग विदेशी विनिमय बाजार में भाग लेना चाहते हैं तो विदेशी विनिमय की अपनी मांग एवं पूर्ति के अनुसार वह विदेशी विनिमय की खरीद अथवा बिक्री करते हैं।

विनिमय दर का निर्धारण

विनिमय दर वह दर है जिस पर एक देश की मुद्रा को दूसरे देश की मुद्रा में परिवर्तित किया जाता है।

वास्तव में दो देशों की मुद्राओं के बीच विनिमय दर के तात्कालिक निर्धारक तत्व एक देश की मुद्रा के लिए दूसरे देश की मुद्रा की मांग एवं पूर्ति है। विनिमय दर का निर्धारण विदेशी विनिमय की मांग और पूर्ति की सापेक्षिक शक्तियों के द्वारा होता है, अतः विनिमय दर के निर्धारण के इस सिद्धांत को मांग एवं पूर्ति का सिद्धांत भी कहते हैं। जिस प्रकार किसी वस्तु का मूल्य उसकी मांग एवं पूर्ति के द्वारा निर्धारित होता है उसी प्रकार विदेशी विनिमय बाजार में मुद्रा का मूल्य अथवा विनिमय दर उसकी मांग एवं पूर्ति की सापेक्षिक शक्तियों के द्वारा निर्धारित होता है।

विदेशी मुद्रा की मांग निम्नलिखित तीन प्रमुख कर्म से की जाती है –

विदेशी मुद्रा की पूर्ति निम्नलिखित स्रोतों पर निर्भर करता है –

(01) विदेशियों के द्वारा घरेलू बाजार में वस्तुओं और सेवाओं की खरीद  (02) विदेशियों एवं विदेशी कंपनियों द्वारा घरेलू बाजार में निवेश

(03) ऋण की वसूली एवं उन पर ब्याज

(04) विदेशियों के हाथों घरेलू संपत्ति की बिक्री

(05) विदेशी मुद्रा में व्यापार करने वालों तथा सट्टेबाजों की कार्यवाहियों के कारण भी देश में विदेशी मुद्रा आती है विदेशी मुद्रा का मूल्य अथवा विनिमय दर उनकी मांग एवं पूर्ति के सापेक्ष शक्तियों के द्वारा निर्धारित होती थी।

विनिमय दर व्यवस्थाओं के प्रकार

समय-समय पर भारत तथा विश्व के देश में कई प्रकार की विनिमय दर व्यवस्थाओं का विकास हुआ है जो निम्नलिखित प्रमुख है –

(01) स्थिर विनिमय दर व्यवस्था – जिस व्यवस्था के अंतर्गत विनिमय दर आधिकारिक रूप में घोषित कर दी जाती है तथा वह स्थिर रहती है इस स्थिर दर में केवल नाम मात्र का परिवर्तन ही किया जाता है। इस व्यवस्था में देश का केंद्रीय बैंक विदेशी मुद्रा बाजार में किस प्रकार हस्तक्षेप करता है जिसमें विनिमय दर में अस्थाई तो बनी रहे, स्थिर विनिमय दर को बनाए रखने के लिए केंद्रीय बैंक को अपने पास विदेशी विनिमय अथवा विदेशी मुद्राओं का कोष रखना पड़ता है।

गुण –

दोष –

(02) सामंजनिया सीमा व्यवस्था – इस व्यवस्था के अंतर्गत एक स्थिर मूल्य पर अमेरिकी डॉलर को प्रत्यक्ष  रूप से सोने में परिवर्तनशील बना दिया गया, ब्रिटेन वुड्स व्यवस्था एवं सामान्य सीमा व्यवस्था थी ।

( 03) लचीली विनिमय दर व्यवस्था – लचीली विनिमय दर विनिमय बाजार में मांग एवं पूर्ति की शक्तियों द्वारा निर्धारित होती है । इसके निर्धारण में केंद्रीय बैंक का हस्तक्षेप नहीं होता, इस व्यवस्था में एक देश की मुद्रा का मूल्य दूसरे देश की मुद्रा के मूल्य के रूप में स्वतंत्र…

रूप से परिवर्तित होता है तथा विनिमय बाजार में मांग एवं पूर्ति की शक्तियों के माध्यम से अपना संतुलन प्राप्त करता है।

गुण –

दोष

(4) विस्तृत सीमा पट्टी व्यवस्था – विस्तृत सीमा पट्टी व्यवस्था के अंतर्गत क्षमता में 10% तक की कमी बेसी अथवा परिवर्तन किया जा सकता था, जबकि ब्रिटेन वुड्स व्यवस्था के अंतर्गत केवल एक प्रतिशत परिवर्तन की ही अनुमति थी, इससे भुगतान संतुलन में सामंजस लाने में सुविधा होती थी।

(5) चलित सीमा बंद व्यवस्था –  इस चलित सीमा बंद व्यवस्था में घोषित विनिमय दर के लिए उच्चतम एवं न्यूनतम सीमाएं निश्चित की जाती है, ताकि मौद्रिक अधिकारियों को अनुशासन में रखा जा सके।

(6) प्रबंधित तरनशील व्यवस्था – इस व्यवस्था में मौद्रिक अधिकारियों को हस्तक्षेप करने का अधिकार होता है, हस्तक्षेप में आधिकारिक दिशा निर्देश एवं नियम पहले से निश्चित कर दिए जाते हैं।

विदेशी विनिमय बाजार की कार्य पद्धति

(02) विदेशी विनिमय का वायदा बाजार – विदेशी विनिमय के वायदा बाजार के अंतर्गत भविष्य में होने वाले लेनदेन आते हैं वास्तव में जिस दिन लेनदेन के कागजातों पर हस्ताक्षर होते हैं उसके कई दिन बाद जाकर वह लेनदेन पूरा होता है।

 

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