वस्तु विनिमय प्रणाली
जब एक वस्तु का दूसरे वस्तु से प्रत्यक्ष रूप से आदान-प्रदान होता है तो उसे वस्तु विनिमय प्रणाली कहते हैं। उदाहरण के लिए गेहूं के बदले चावल, चावल के बदले कपड़ा इत्यादि का विनिमय।
वस्तु विनिमय प्रणाली की कठिनाइयां
मानव सभ्यता के प्रारंभ में वस्तु विनिमय प्रणाली प्रचलित थी, एक व्यक्ति गेहूं देकर फल, मांस, कपड़ा आदि वस्तुएं पा जाता था अर्थात व्यक्ति अपनी जरूरत की चीजों को एक वस्तु के माध्यम से दूसरे वस्तुओं को प्राप्त करते थे और अपनी आवश्यकता की पूर्ति करते थे लेकिन धीरे-धीरे वस्तु विनिमय प्रणाली में अनेक कठिनाइयों और असुविधा नजर आने लगी और यह प्रणाली व्यवसाय के लिए अनुपयुक्त सिद्ध होने लगी। वस्तु विनिमय प्रणाली की प्रमुख कठिनाइयां निम्नलिखित है –
(01) आवश्यकताओं के दोहरे संयोग का अभाव – वस्तु विनिमय प्रणाली की पहली कठिनाई यह है कि इसमें आवश्यकताओं के दोहरे संयोग का अभाव पाया जाता है । आवश्यकताओं का दोहरे संयोग का अभाव का मतलब यह है कि दो व्यक्ति ऐसी होनी चाहिए जिसको एक दूसरे की वस्तु की आवश्यकता हो और वह उन्हें बदलने के लिए तैयार हो ।
उदाहरण के लिए मोहन के पास गेहूं है उनके बदले हुए दूध चाहता है तो वह उसे एक ऐसे व्यक्ति की खोज करनी होगी जिसके पास दूध हो और वह दूध के बदले में गेहूं लेने के लिए तैयार हो, लेकिन वास्तविक जीवन में इस प्रकार का सहयोग मिलना बहुत कठिन होता है।
(02) मूल्य के सामान्य मापन का अभाव – वस्तु विनिमय प्रणाली की दूसरी कठिनाई यह है कि इसमें मूल्य के एक सामान्य मापक का अभाव पाया जाता है इसके फल स्वरुप दो वस्तुओं के बीच विनिमय की मात्रा निश्चित करना कठिन हो जाताहै।
उदाहरण के लिए यह बतलाना बहुत कठिन है कि एक बकरी के बदले कितने कपड़ा दिया जाए तथा एक गाय के बदले कितना बकरियां दी जाए इस प्रकार से वस्तु विनिमय प्रणाली में मूल्य के सामान्य मापन का अभाव पाया जाता है।
(03) वस्तुओं की विभाजकता का अभाव – कुछ वस्तुएं ऐसी होती है जिनका विभाजन नहीं किया जा सकता है तथा विभाजन करने से उसकी उपयोगिता समाप्त हो जाती है ऐसी अवस्था में इन वस्तुओं की अविभाज्यता के कारण वस्तु विनिमय में कठिनाइयां उत्पन्न हो जाती है।
मान लिया जाए कि किसी व्यक्ति के पास एक गाय हैं इसके बदले वह गेहूं कपड़ा और कंबल लेना चाहता है इसके लिए उसे एक ऐसे व्यक्ति की खोज करनी होगी जिसके पास यह तीनों वस्तुएं उपलब्ध हो लेकिन वास्तविक जीवन में ऐसा व्यक्ति खोजना बहुत कठिन होता है दूसरी ओर गाय को तीन टुकड़ों में काटकर इन तीनों वस्तुओं को प्राप्त नहीं किया जा सकता है क्योंकि ऐसा करने से गाय की उपयोगिता समाप्त हो जाएगी।
(04) मूल्य के संचय का अभाव – वस्तु विनिमय प्रणाली में संचय का काम केवल वस्तुओं के रूप में किया जा सकता था लेकिन वस्तु के रूप में संचय करने में कठिनाइयां है क्योंकि वस्तुओं को अधिक दिनों तक संचय करने से सड़ने गलने का भय बना रहता है ।
जैसे यदि गाय , बकरी आदि जानवरों के रूप में वस्तुओं का संचय किया जाए तो इन सभी की एक निश्चित जीवन काल होती है उस जीवन काल के समाप्त होने पर उसकी उपयोगिता स्वत समाप्त हो जाती है या कोई ऐसा बीमारी आ जाने पर उन वस्तुओं को संचय नहीं किया जा सकता है इस प्रकार से मूल्य के संचय का अभाव इसकी वस्तु विनिमय प्रणाली की एक कठिन समस्या है।
(05) भविष्य के भुगतान के साधन का अभाव – वस्तु विनिमय प्रणाली में उधार तथा लेनदेन का काम बहुत कम हो सकता है क्योंकि इसमें भविष्य में भुगतान का अभाव होती है उधार वस्तुओं के रूप में ही दिया जा सकता है और भविष्य में वस्तुओं की कीमत में स्थिरता नहीं होती है तथा टिकाऊ भी नहीं होता है।
मान लिया जाए की कोई व्यक्ति दूसरे व्यक्ति से 5 वर्षों के लिए एक गाय उधार लेता है और 5 वर्षों के बाद गाय को लौटा देता है तो ऐसी अवस्था में हो सकता है की वस्तुओं के रूप में गाय का मूल्य कम हो गया हो तथा गाय का अपना स्वास्थ्य ठीक ना रहे, पहले जितनी दूध उतना ना दे सके, जितना दूर पहले देती थी ऐसी अवस्था में ऋण दाता को हानि होगी अतः वस्तु विनिमय प्रणाली में भविष्य की भुगतान के साधन का अभाव पाया जाता है।
(06) मूल्य के हस्तांतरण का अभाव – वस्तु विनिमय प्रणाली में मूल्य के हस्तांतरण में भी कठिनाई होती है मूल्य से तात्पर्य संपत्ति से होती है तथा संपत्ति को एक स्थान से दूसरे स्थान पर ले जाया नहीं जा सकता है।
मान लिया जाए की वस्तु विनिमय प्रणाली के समय किसी व्यक्ति का मकान रांची में था और वह दिल्ली जाकर बसना चाहता है ऐसी अवस्था में उसे अपना मकान छोड़कर ही दिल्ली जाना पड़ेगा क्योंकि मकान के बदले उसे देने योग्य वस्तु का अभाव था और ऐसी व्यक्ति का मिलना कठिन था जिसका मकान दिल्ली में हो और उसके बदले वह उसे व्यक्ति का रांची वाला मकान लेने को तैयार हो इस प्रकार से वस्तु विनिमय प्रणाली में मूल्य के हस्तांतरण का अभाव पाया जाता है।
मुद्रा – MONEY
अंग्रेजी भाषा के Money लैटिन भाषा के”मोनेटा” ( Moneta) शब्द से बना है “मोनेटा” रोमन देवी जूनो का नाम है जिसके मंदिर में मुद्रा बनाने का काम किया जाता था देवी जूनो को स्वर्ग की रानी माना गया है और इस कारण से स्वर्गीय आनंद का साधन समझा जाता था और देवी के मंदिर में मुंद्रा निर्माण का कार्य किया जाता था।
मान्य शब्द “मONEY” की उत्पत्ति लैटिन भाषा से हुई है। लैटिन में “मोनेटा” नामक शब्द से इसकी उत्पत्ति हुई है, जिसका अर्थ है “चाँदी का सिक्का” या “धन”। इस शब्द का प्रयोग रोमन देवी जूनो के मंदिर में किया जाता था, जहाँ पर सिक्के बनाए जाते थे। अंग्रेजी में “MONEY” शब्द का प्रयोग 13वीं शताब्दी में शुरू हुआ। इसका अर्थ है “धन”, “संपत्ति”, या “वित्त”।
विभिन्न अर्थशास्त्रियों ने मुद्रा की परिभाषा इस प्रकार से दी है –
प्रोफेसर रॉबर्टसन के अनुसार – “मुद्रा वह वस्तु है जिसका प्रयोग ऐसी किसी भी वस्तु के लिए किया जाता है जो वस्तुओं के मूल्य के भुगतान अथवा अन्य दायित्वों को निपटने में व्यापक रूप से ग्रहण की जाती है “।
प्रोफेसर हार्टले विदर्ष के अनुसार – “ मुद्रा हुआ है जो मुद्रा का कार्य करती है ” ।
उपरोक्त परिभाषाओं को देखने से यह स्पष्ट होता है कि वह सभी बस्ती मुद्रा कही जाएगी जिनका प्रयोग विनिमय के माध्यम के रूप में किया जाता है अतः सिक्के एवं पत्र मुद्रा के अलावा चेक ड्राफ्ट आदि को भी मुद्रा कहा जाता है अर्थात दूसरे शब्दों में हम यह कह सकते हैं की मुद्रा एक विनिमय का माध्यम है।
मुद्रा प्रोफेसर किनले ने मुद्रा के कार्यों को मुख्ता तीन भागों में बांटा है –
(A) मुख्य कार्य
(01) विनिमय का माध्यम
(02) मूल्य का मापक
(B) गौण कार्य
(03) विलंबित भुगतान का मन
(04) मूल्य का संचय
(05) मूल्य का हस्तांतरण
(C) आकस्मिक कार्य
(06) सामाजिक आई का वितरण
(07) साख का आधार
(08) पंजिया संपत्ति को सामान्य रूप प्रदान करना
(09) शोधन क्षमता की गारंटी
(10) संपत्ति की तरलता
(11) निर्णय का वाहक
(A) मुख्य कार्य
(01) विनिमय का माध्यम – मुद्रा का सबसे प्रमुख कार्य यह है कि यह विनिमय के माध्यम का कार्य करता है । मुद्रा के माध्यम से एक वस्तु को दूसरे वस्तु में सरलता पूर्वक विनिमय किया जा सकता है । वस्तु विनिमय प्रणाली के दोहरे सहयोग की समस्या एवं अन्य समस्या को भी मुद्रा ने दूर किया है ।
(02) मूल्य का मापन – मुद्रा का दूसरा सबसे प्रमुख कार्य यह है कि मूल्य के मापन का कार्य करती है । वस्तु विनिमय प्रणाली के समय वस्तुओं के बीच विनिमय के अनुपात को निश्चित करना कठिन था क्योंकि मूल्य का कोई सामान्य मापन नहीं था मुद्रा ने इस कठिनाइयों को दूर कर दिया है । मुद्रा मापन की इकाई का कार्य करती है जिस प्रकार दूरी को मीटर से वजन को किलोग्राम से तथा तापमान को थर्मामीटर से मापा जाता है ठीक उसी प्रकार मुद्रा भी मापन का कार्य करती है।
(B) गौण कार्य
(03) विलंबित भुगतान का मान – मुद्रा विलंबित भुगतान का मान का कार्य भी करती है वर्तमान समय में साख या उधार का बहुत ही महत्व है इसके बिना कोई भी व्यापार या व्यवसाय नहीं हो पता है क्योंकि उधार के लेन-देन का कार्य मुद्रा के द्वारा ही किया जाता है और उधार ली गई रकम का भुगतान भी भविष्य में मुद्रा के रूप में ही किया जाता है। वस्तु विनिमय प्रणाली के समय उधार लेने या देने में बहुत सारी कठिनाइयां उत्पन्न होती थी जिसको मुद्रा ने आज समाप्त कर दिया है।
(04) मूल्य का संचय – वस्तु विनिमय प्रणाली के समय किसी भी वस्तुओं को अधिक दिनों तक संग्रहित करके नहीं रखा जा सकता था, जिसके चलते बहुत सारी कठिनाइयां उत्पन्न होती थी लेकिन मुद्रा के आविष्कार ने इन सब कठिनाइयों को दूर कर दिया है साथ-साथ मूल्य अथवा संचय को सरल बना दिया है।
(05) मूल्य का हस्तांतरण– मुद्रा का एक कार्य यह भी है कि यह मूल्य के हस्तांतरण का कार्य भी करती है विनिमय के विकास के साथ-साथ दूर-दूर तक क्रय विक्रय करने की आवश्यकता पड़ी जिसके लिए क्रय शक्ति का हस्तांतरण जरूरी था मुद्रा ने इस कार्य को सरलता पूर्वक किया है अब कोई भी व्यक्ति एक स्थान पर अपनी संपत्ति को बेच कर दूसरे स्थान पर संपत्ति खरीद सकता है इसकी सहायता करने में मुद्रा ने महत्वपूर्ण योगदान दिया है।
(C) आकस्मिक कार्य
(06) सामाजिक आय का वितरण – किसी भी देश के अंतर्गत राष्ट्रीय आय को वितरण करने के लिए मुद्रा का महत्वपूर्ण योगदान होता है क्योंकि अगर मुद्रा नहीं होता तो हमारे राष्ट्रीय लाभांश लाभ का हिस्सा की आवश्यकता में कठिनाई होती थी जिसको मुद्रा ने दूर कर दिया है।
(07) साख का आधार– वर्तमान समय में आज बैंक चेक, ड्राफ्ट, बिल आदि साख पत्रों का उपयोग मुद्रा के समान ही किया जाने लगा है इन साख पत्रों को मुद्रा के आधार पर ही जारी किया जाता है, बैंक जब इन साख पत्रों को जारी करता है तो वह साख का निर्माण करता है और साख मुद्रा की पीछे अपने आप एक निश्चित अनुपात में मुद्रा भी रख लेता है ताकि मांग होने पर साख मुद्रा को नगद मुद्रा में बदला जा सके, ऐसा करने से लोगों का बैंकों के ऊपर भरोसा बना रहता है।
(08) पूंजी या संपत्ति को सामान्य रूप प्रदान करना– मुद्रा पूंजी अथवा संपत्ति को सामान्य रूप प्रदान करती है, पूंजी का निर्माण बचत पर निर्भर करती है और यह बचत मुद्रा के रूप में ही की जाती है । मुद्रा के चलते पूंजी में तरलता और गतिशीलता आती है जिसे पूंजी की विनियोग में सुविधा होता है, इस प्रकार मुद्रा पूंजी को सामान्य रूप देखकर पूंजी के संचय एवं विनियोग दोनों को सरल बना देती है।
(09) शोधन क्षमता की गारंटी – मुद्रा के द्वारा किसी व्यक्ति या फॉर्म को ऋण भुगतान करने की क्षमता या शोधन क्षमता प्राप्त होती है । अतः प्रत्येक फॉर्म अपनी शोधन क्षमता को बनाए रखने के लिए पर्याप्त मात्रा में अपने पास मुद्रा रखता है यदि उसके पास भुगतान करने के लिए पर्याप्त मात्रा में मुद्रा नहीं होता है तो उसकी शोधन क्षमता समाप्त हो जाती है और उसे दिवालिया घोषित किया जाता है । इस प्रकार मुद्रा शोधन क्षमता की गारंटी प्रदान करती है।
(10) संपत्ति की तरलता – मुद्रा संपत्ति को तरलता प्रदान करती है, प्रत्येक व्यक्ति अपने संपत्ति के कुछ भाग को तरल रूप में रखना पसंद करता है और यह तरलता नगद मुद्रा का ही दूसरा नाम है।
प्रोफेसर केन्स के अनुसार मुद्रा की मांग निम्नलिखित दृष्टिकोण से की जाती है
लेनदेन की प्रवृत्ति
आकस्मिक घटनाओं की प्रवृत्ति
सट्टेबाजी की प्रवृत्ति
इस प्रकार मुद्रा को तरल संपत्ति के रूप में प्रयोग किया जाता है जो अर्थव्यवस्था के लिए बहुत ही महत्वपूर्ण है।
(11) निर्णय का वाहक – प्रोफेसर ग्राहम के अनुसार मुद्रा निर्णय का वाहक होती है। हम जानते हैं की मुद्रा के रूप में भविष्य के लिए क्रय विक्रय का संचय किया जाता है ताकि लोग अपनी भविष्य के लिए आवश्यकताओं की पूर्ति कर सके। प्रत्येक व्यक्ति चाहता है कि वह अपने इच्छा एवं निर्णय के अनुरूप संचित धन का प्रयोग करें, मुद्रा इस संबंध में व्यक्ति के निर्णय के वाहक का काम करती है क्योंकि मुद्रा के रूप में धन का संचय कर व्यक्ति भविष्य में अपने निर्णय के अनुसार मनचाहे ढंग से उसे खर्च कर सकता है।